Wednesday, November 16, 2011

क्या प्यार इसी को कहते हैं ?

"क्या प्यार इसी को कहते हैं ?"
पुस्तक कम्पलीट हुई मित्रों ... दो-तीन दिन में करेक्शन का काम पूरा करना है ... फिर कोशिश करेंगे शायद अपने जैसे नौसिखिये लेखकों को भी पब्लिशर मिल जाए ...
गर नहीं मिला तब ... अपुन के पास "फेसबुक व ब्लॉग रूपी इंटरनेशनल मंच" तो उपलब्ध ही हैं ...

देखेंगे, पर एक कोशिश जरुर करेंगे प्रकाशन के लिए / यदि आपके पास कोई सुझाव हो प्रकाशन सम्बन्धी तो अवश्य दें ...
शाम-रात से पुन: अपने पुराने तेवरों पर आ जायेंगे ... तब तक के लिए पुस्तक के अंशों की अंतिम किश्त ...

"... यार नेहा इस समस्या का समाधान तो सेक्सुअल रिलेशन आई मीन सेक्सुअल इंटरकोर्स पर जाकर ख़त्म होता है, और जहां तक अपुन का दिमाग दौड़ रहा है इस "बोबी डार्लिंग" जैसी समस्या का समाधान कोई और हो भी नहीं सकता ... पर सेक्सुअल इंटरकोर्स भी अपने आप में एक समस्या तो है ही भले छोटी ही सही ... लगता है कि दो के झगड़े में तीसरे का भला होना तय है, आई मीन प्रेम को "सेक्स" का मजा लेने का सुनहरा मौक़ा, वो भी बिना मेहनत के मिलने वाला है ... चलो ठीक है, क्या फर्क पड़ता है ... पर सवाल ये है कि किसके सांथ ? ..."

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

प्रतीक्षा रहेगी, शुभकामनायें।