Tuesday, November 8, 2011

अस्तित्व ...

तुम क्यूँ बता रहे हो
कि -
देर से आओगे
तुम्हारा जब जी चाहे, चले आना
घर है तुम्हारा
किसने रोका है, तुम्हें
कौन रोक सकता है तुम्हें !

तुम हमेशा से
अपनी मर्जी के मालिक रहे हो
आज भी हो
जब चाहे तुम्हारी मर्जी -
आते हो
और जब चाहे, चले जाते हो !

उफ़ ! मैं कौन हूँ !!
शायद -
बिस्तर से जियादा कुछ भी नहीं !
तुम आने पर
मुझे झटकारना भी नहीं चाहते
सीधे आकर गिर पड़ते हो
और, सो जाते हो !

भले चाहे समाज मुझे -
तुम्हारी धर्मपत्नी समझता है
और भले चाहे धर्म मुझे -
तुम्हारी अर्धांग्नी मानता है
पर, मैं जानती हूँ
मेरा अस्तित्व -
बिस्तर से जियादा कुछ भी नहीं है !!

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