मुझे तुम, यूँ ही -
समेटते रहोगे
लपेटते रहोगे
सहेजते रहोगे
अपनी बांहों में, बोलो -
कब तक ?
कब तक
तुम्हें मेरा आलिंगन
यूँ ही
सुकूं देता रहेगा !
और कब तक तुम
यूँ ही
लिपटे रहोगे मुझसे
क्या, किसी दिन
समेटते रहोगे
लपेटते रहोगे
सहेजते रहोगे
अपनी बांहों में, बोलो -
कब तक ?
कब तक
तुम्हें मेरा आलिंगन
यूँ ही
सुकूं देता रहेगा !
और कब तक तुम
यूँ ही
लिपटे रहोगे मुझसे
क्या, किसी दिन
तुम्हारा मन -
नहीं भर जाएगा, मुझसे ?
नहीं भर जाएगा, मुझसे ?
1 comment:
मन भरता नहीं है।
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