Saturday, September 10, 2011

... मरने को तो हम कब के मर चुके हैं !

किताबों में नहीं था, सितारों में नहीं था
मैं कुछ तो था मगर, कुछ भी नहीं था !

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कभी चमगादड़, कभी गीदड़, कभी डोगी होता है
ये किस नस्ल का है, घड़ी-घड़ी सूरत बदलता है !
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जो खाए थे, वो अंगूर बहुत मीठे निकले
जो चखे नहीं, 'खुदा' जाने वो कैसे खटटे निकले !
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तुम चंद घंटों में ही नींद-नींद चिल्ला रहे हो
और एक हम हैं, जो सदियों से जागे हुए हैं !
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क्या लिखूं, क्या नहीं, चहूँ ओर शोर है
झूठ की मंशा है जीत जाए, पुरजोर है !
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जन्नती हूरों की उमर होगी लाख बरस लेकिन
ये न भूलें कि - जिस्म सोलह सा करारा होगा !
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रोज खतों को देते-लेते, मुझको उससे प्यार हुआ है
अब खतों को देख-देख के, हम दोनों हंस लेते हैं !!
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रश्म-ओ-रिवाज अब तुम इतने भी न कड़े करो यारो
मोहब्बत हमारी, तुम तक जाते जाते न दम तोड़ दे !
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बिना देखे, हम ये कैसे फैसला कर लें
जन्नत है, जन्नत की हकीकत देखें !
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कभी आशाएं, कभी अभिनव प्रयोग, हमें ज़िंदा रखे हैं 'उदय'
वरना मरने को तो हम कब के मर चुके हैं !

3 comments:

Dr (Miss) Sharad Singh said...

सभी शेर एक से बढ़कर एक.....
बहुत ख़ूब !

प्रवीण पाण्डेय said...

फिर भी जीवन में कुछ तो है, हम थकने से रह जाते हैं।

Roshi said...

bahut khoob..............