न जाने कब तलक
ये मौन की भाषा चलेगी
सुनेगा कौन, बोलेगा कौन
और कौन होगा
जो ये फैसला करेगा
कि -
एक रोटी थी, जो
रखी थी, सरकारी मेज पर
मौक़ा मिला
आमने-सामने बैठे, दोनों ने
गुप-चुप तरीके से
दो तुकडे किये
और दोनों ने, एक-एक टुकड़ा
फटा-फट सूत लिया !
अब
दोनों मिलकर, हल्ला कर रहे हैं
और लड़-लड़ पड़ रहे हैं
कि -
किसने खाई रोटी -
कहाँ गायब हुई रोटी !
पहला बोलता है, दूजा सुनता है !
दूजा बोलता है, पहला सुनता है !
रोटी, रोटी, सरकारी रोटी ... !!
5 comments:
सरकारी रोटी होती है इसीलिए है शायद
सच कहा है आपने| सरकारी रोटी का यही हाल होता है|
सस्ती और ग्राह्य।
तो मूर्ख तो अपन ही हैं भई बंदरों को अपनी रोटी बंटवाने के काम में लगा रखा है...
जुर्म क्या? ये सजा क्यों है?
'पहला बोलता है
दूजा सुनता है
दूजा बोलता है
पहला सुनता है'----क्या बात है। सुन्दर और लाजवाब शब्द-यात्रा।
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