Wednesday, September 21, 2011

रोटी, रोटी, सरकारी रोटी ...

न जाने कब तलक
ये मौन की भाषा चलेगी
सुनेगा कौन, बोलेगा कौन
और कौन होगा
जो ये फैसला करेगा
कि -
एक रोटी थी, जो
रखी थी, सरकारी मेज पर
मौक़ा मिला
आमने-सामने बैठे, दोनों ने
गुप-चुप तरीके से
दो तुकडे किये
और दोनों ने, एक-एक टुकड़ा
फटा-फट सूत लिया !
अब
दोनों मिलकर, हल्ला कर रहे हैं
और लड़-लड़ पड़ रहे हैं
कि -
किसने खाई रोटी -
कहाँ गायब हुई रोटी !
पहला बोलता है, दूजा सुनता है !
दूजा बोलता है, पहला सुनता है !
रोटी, रोटी, सरकारी रोटी ... !!

5 comments:

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

सरकारी रोटी होती है इसीलिए है शायद

Patali-The-Village said...

सच कहा है आपने| सरकारी रोटी का यही हाल होता है|

प्रवीण पाण्डेय said...

सस्ती और ग्राह्य।

Rajeysha said...

तो मूर्ख तो अपन ही हैं भई बंदरों को अपनी रोटी बंटवाने के काम में लगा रखा है...

जुर्म क्या? ये सजा क्यों है?

चंदन कुमार मिश्र said...

'पहला बोलता है
दूजा सुनता है
दूजा बोलता है
पहला सुनता है'----क्या बात है। सुन्दर और लाजवाब शब्द-यात्रा।