कभी गुलाब
कभी रात-रानी हूँ मैं
फूल हूँ
फूलों में खुशबू भी हूँ मैं !
कभी मुहब्बत
कभी मुहब्बत की रश्में हूँ मैं
भोर की किरणें
रात की चांदनी हूँ मैं !
कभी धरा
कभी खुला आसमां हूँ मैं
सिर्फ तुलसी नहीं
पीपल की छाँव भी हूँ मैं !
कभी सब
कभी जन्नती शाम हूँ मैं
लम्हें लम्हें में
सुकूं की अमिट रात हूँ मैं !
बिखरी बांहों में
सिमटती आस हूँ मैं
सागर हूँ मैं
समाती नदिया भी हूँ मैं !
जमीं के जर्रे जर्रे
और सारी फिजाओं में हूँ मैं
दिलों की धड़कन हूँ
रगों में बहता लहु भी हूँ मैं !
मैं सुनती हूँ अक्सर
तुम ही तो कहते हो
मैं सारा जहां हूँ
सिर्फ औरत नहीं हूँ मैं !!
5 comments:
bhtrin rchna ke liyen badhaai ...akhtar khan akela kota rajsthan
यही भाव जागृत करना होगा।
सुन्दर अभिव्यक्ति....... राम राम भाई
आपके ब्लॉग की चर्चा ब्लॉग4वार्ता पर
ब्लोगोदय नया एग्रीगेटर
पितृ तुष्टिकरण परियोजना
... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।
गज़ब की भावाव्यक्ति।
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