'हिन्दी' है
जो हमें आज भी
घर-आँगन
खेतों-खलियानों
बाग़-बगीचों -
में कलियों सी खिलती लगे है
लगे तो है लगे, पर
कहीं ज्यादा 'पूजा की माला' लगे है !
'हिन्दी' है
जो हमें आज भी
चन्दन
गुलाब
कस्तूरी
में महकती खुशबू लगे है
लगे तो है लगे, पर
कहीं ज्यादा 'हवन की खुशबू' लगे है !
'हिन्दी' है
जो हमें आज भी
माँ के गुस्से
बाप की डांट
गुरु की लताड़ -
में भी कुछ न कुछ देती लगे है
लगे तो है लगे, पर
कहीं ज्यादा 'मिश्री सी मीठी' लगे है !
'हिन्दी' है
जो हमें आज भी
दोस्ती
मुहब्बत
भाईचारे -
में कदमों संग कदम बन चलती लगे है
लगे तो है लगे, पर
कहीं ज्यादा 'जिन्दगी का साया' लगे है !
'हिन्दी' है
जो हमें आज भी
दिल की
मन की
ख्यालों की
ख़्वाबों की -
'दुल्हन' लगे है
लगे तो है लगे, पर
कहीं ज्यादा 'मंदिर की मूरत' लगे है !!
3 comments:
जिससे सीखी अपनी बोली,
अब अपनी सी मीठी लागे।
bahut sundar kavita hai... ham sab ki pyari hindi...
roman me likhne ke aaj maaf karen..
बहुत शानदार रचना। आपकी रचना 'हिन्द की शान है हिन्दी' को मेरे ब्लाग saannidhya.blogspot.com में 'राष्ट्रभाषा ने पिछले एक वर्ष में क्या खोया क्या पाया' में बीच में टैग किया है। मेरे ब्लॉग पर भी भ्रमण करें और मुझे ईमेल से मुझे सुझाव दें। (aakulgkb@gmail.com) आपकी पोस्ट को टैग किया, आपको बुरा तो नहीं लगा? हिन्दी पर लिखी दोनों रचनाओं के लिए एक बार फिर बधाई।
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