Monday, August 22, 2011

... देख बाहर तू निकल, मैं धूप में भी खिल रहा !!

किसी ने चाल बदल ली, किसी ने बोली बदल ली
हुआ शातिर वो इतना कि उसने सूरत बदल ली !
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आज हाकिम के बंदे-अन्ना के दर, है ईमान का रोजा
कल बेईमान-गुनहगारों के घर, होगी सुलगती होली !
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अब कोई आकर पूंछ न बैठे, हाल-ए-वतन मुझसे 'उदय'
उफ़ ! भ्रष्टतंत्र को देख-देख के, अब गूंगा रहा नहीं जाता !
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जुल्म हम सहते रहें, बस ललकारना गुनाह है
भ्रष्टाचारियों के पास, आज पैंतरे हजार हैं !!
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दो-चार लोगों को, मौक़ा मिला है आज फिर
खुद जंग लड़ सकते नहीं, उंगली उठाते हैं फिरे !
...
लुटेरों के बीच रहते रहते, लुटेरा बनने का मन हो गया
हिस्से-बंटवारे की चाह में, खुद लुटने का भय खो गया !
...
न जाने कब तलक, तेरी यादों के साये में, मेरी ये शाम गुजरेगी
सच ! तेरी यादें न होंगी, न जाने कैसे मुझे, फिर नींद आयेगी !!
...
सच ! तू शीत लहरों में भी, बैठ कर मुरझा रही
देख बाहर तू निकल, मैं धूप में भी खिल रहा !!

3 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सारे अशआर जागरूक करते हुए

Minakshi Pant said...

अब कोई आकर पूंछ न बैठे, हाल-ए-वतन मुझसे 'उदय'
उफ़ ! भ्रष्टतंत्र को देख-देख के, अब गूंगा रहा नहीं जाता !
बहुत खूबसूरत अवाहन दोस्त जी :)

Pratik Maheshwari said...

अंतिम पंक्तियाँ सबसे बेहतरीन!