Tuesday, August 30, 2011

अन्न का दाना ...

भरने को तो मन रूपी पेट
दौलत से भर जाएगा
पर, जब आयेगी नींद
तुम्हें, हमें
मखमली चादर पर
करवट बदल-बदल कर
तुम, हम
कैसे रातें काटेंगे
नींद नहीं आयेगी, तब तक
जब तक, अन्न का दाना
तुम्हारे, हमारे
पेट के अन्दर जाएगा !

सोचो, कैसे तड़फ-तड़फ कर
तुम, हम
खुद
को कोसेंगे
रखा हुआ होगा, छप्पन भोग
तुम्हारे, हमारे
सामने, आगे-पीछे, पर
तुम, हम
सुगर, डायबिटीज, व अन्य
तरह तरह की बीमारियों के कारण
छू भी पाएंगे
मुंह में टपक-टपक कर लार
तुम्हें, हमें, ललचाएगी
सोचो, भूखे, ललचाये
तुम, हम
बिस्तर पर, रात कैसे काटेंगे !!

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

अन्नमय कोश

Kailash Sharma said...

बहुत सटीक अभिव्यक्ति..