मोहब्बत में, वादों में, सच्चाई में
दिल, दिमाग को, आपस में जद्दो-जहद करते देखा है !
जिन्दगी में, जिन्दगी से, जिन्दगी को
रूठते-मनाते, रोते-हंसते, पल-पल आगे बढ़ते देखा है !
सत्ता के गलियारों से साहित्यिक चौपालों तक
छल, कपट, प्रपंचरूपी मुखौटों को आगे बढ़ते देखा है !
नहीं था रंज, हार-जीत का हमें
भेद-भाव के बीच भी, इरादों को आगे बढ़ते देखा है !
तंग, मुश्किल, परेशां, घड़ी में भी
हमने खुद को, कदम-दर-कदम आगे बढ़ते देखा है !!
5 comments:
जिन्दगी में, जिन्दगी से, जिन्दगी को
रूठते-मनाते, रोते-हंसते, पल-पल आगे बढ़ते देखा है !
बहुत सुन्दर रचना .....
sundar prstuti....
बस बढ़ते जाना है।
नहीं था रंज, हार-जीत का हमें
भेद-भाव के बीच भी, इरादों को आगे बढ़ते देखा है !
खुबसूरत भाव भरी रचना , बधाई .
पोला पर्व की भी बधाई .
बहुत ही सुन्दर भावों को अपने में समेटे शानदार कविता.
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