मैं चोर ही
लोग कह भी देते थे, मुझे
चोर-उचक्का !
लोग कह भी देते थे, मुझे
चोर-उचक्का !
पर होते होते, नेता हो गया
अरे भाई, मैं नेता हो गया
क्या देश है, कितना अच्छा तंत्र है
लोकतंत्र है !
जब हम चाहते हैं, जैसा जैसा चाहते हैं
वैसा वैसा कर लेते हैं
तोड़ लेते हैं, मरोड़ लेते हैं
अपनी अपनी जरुरत पर
जरूरतों के अनुसार !
पर, जब कोई
हमारा अहित चाहता है
तब, हम
अड़ जाते हैं, लड़ जाते हैं, भिड़ जाते हैं !
कह देते हैं, कहने लगते हैं
कि -
यह लोकतंत्र की -
मर्यादा के सख्त खिलाफ है !!
2 comments:
जोरदार कटाक्ष.
सन्नाट व्यंग।
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