चारों पहर तलाश में तेरी, भटकता फिरा मैं दर-बदर
अब किस घड़ी मैं बैठकर, सजदा करूं - सजदा करूं !
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बनना था, जो बिगड़ कर भी बन गई है बात
वरना बनते बनते, बिगड़ जाती है अक्सर !!
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सावन बरसे, तरसे हैं मन, 'रब' जाने क्यूं बिछड़े हैं हम
न तुम भूले - न हम भूले, सावन के संग हंसी-ठिठोले !
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रोज सोचते हैं, तुमसे बातें न करें
देखते हैं तुम्हें, फिर रहा नहीं जाता !
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तराश के पत्थर, जमीं में गाड़ दो यारो
देखना एक दिन, वही मंजिल सुझाएंगे !
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गोश्त जबड़ों में हो जिनके, और लव हों रक्त से रंजित
भला कैसे, हम मान लें उनको, कि वो शैतां नहीं होंगे !
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सवालों की आड़ में, क्या खूब खिचड़ी पकाई है
भ्रष्टाचारियों की, जबरदस्त पीठ थप-थपाई है !
2 comments:
बहुत खूब ...सारे अशआर एक से बढ़ कर एक
kya bat hai bhtrin ..akhtar khan akela kota rajsthan
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