Tuesday, June 28, 2011

... उफ़ ! सारा सिस्टम कंटीला है !!

फर्क इतना ही है यारा, अमीरी और गरीबी में
कोई बिंदास सोता है, किसी को नींद नहीं आती !
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रंगों से सजाई है, क्या खूब सजाई है दुनिया किसी ने
कहीं ख्याल, तो कहीं जज्बात, हैं रंगों में बिखरे हुए !
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अब मुंह छिपाने, और सिर झुकाने का दौर नहीं रहा
सरे आम घूमते हैं, दागी : नेता, अफसर, दुराचारी !
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जरुरत किसे है, और कौन चाहता है मजबूत लोकपाल
अन्ना, तुम, हम, या चहूँ ओर बिखरे भ्रष्ट नेता हमारे !!
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हम कर तो रहे थे प्यार, बिना शर्तों के ही
पर हो गए मजबूर, तेरी शर्तों पे हम !

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रिमझिम रिमझिम फुहारों संग, मन मेरा मचला जाए
तुम जाओ बारिश बन कर, तन मेरा है सूखा जाए !
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चलो कुछ दिया ही है, भले झूठा सही
वरना लोग तो लूटने पे उतारू हैं !
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हैं कुछ लोग जो आलोचना में मस्त हुए हैं
उफ़ ! समालोचना से उन्हें परहेज क्यूं है !
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जाने कौन-सा चेहरा, है छिपा तस्वीर में तेरी
जो दिखता है, वो मुझे असली नहीं दिखता !
...
किसे उखाड़ें, और किसे उखाड़ें
उफ़ ! सारा सिस्टम कंटीला है !!

2 comments:

Kailash Sharma said...

बहुत सारगर्भित और सटीक प्रस्तुति..

Arunesh c dave said...

bahut sahi likha hai apne