Wednesday, June 22, 2011

... सारा कालाधन, नेताओं, और सिर्फ नेताओं का है !!

किसी ने चाहकर ही, चाहने की कसम खाई है
खता तो हुई है किसी से, अब करें तो क्या करें !
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क्या खूब डगमगाया है ये दिल, तेरे इंतज़ार में
सोचता हूँ, कहीं इन्तेहा हो जाए इंतज़ार की !
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सच ! बैठकें, बैठकों के दौर, क्या खूब बैठकें हैं 'उदय'
लोकपाल के नाम पे भ्रष्टाचारियों की दम फूलती है !
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लोग चीख-चीख के चिल्ला रहे हैं, फिर भी कोई मानता नहीं
सारा का सारा कालाधन, नेताओं, और सिर्फ नेताओं का है !
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चाँद ! खुशी से जा छिपा था, या नाराज था हमसे
बादलों की खता थी, या कहीं बैठा था छिप कर !!
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कुसूर इतना ही था, कि मोहब्बत में भिड़ गए थे
उफ़ ! आशिकी खामोश थी, और वो पिट रहे थे !
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कुछ जख्मों को हम खुद ही, ठीक होने नहीं देते
हर घड़ी याद रहते हैं, अब कहीं ठोकर नहीं लगती !
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नहीं है रंज कि तुम, चाहकर भी हमें भूल बैठे हो
सांथ नहीं, सफ़र में नहीं, पर यादों में बसर है मेरा !
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सच ! ये मंजिलों की ओर, हैं बढ़ते कदम मेरे
अभी रुकना कहां, थमना कहां, बढ़ते जाना है !
...
हिन्दोस्तां में ही, लोगों को परहेज हुआ है हिन्दी से
पर हम क्या करें 'उदय', हमें इंगलिश नहीं आती !!

1 comment:

Amit Chandra said...

लोग चीख-चीख के चिल्ला रहे हैं, फिर भी कोई मानता नहीं
सारा का सारा कालाधन, नेताओं, और सिर्फ नेताओं का है !

अरे! कोई माने या ना माने हम तो मानते है।