नहीं, कोई नहीं है
चेला मेरा ... और
हो भी नहीं सकता
क्यों ... क्योंकि
मैं चाहता भी नहीं
कि कोई हो ... चेला ... मेरा
हैं ... जो भी हैं ... जितने भी हैं
सब-के-सब ... मेरे
पाठक, आलोचक, समालोचक हैं
ये ही मेरे अपने हैं
जिन्हें मैं जानता, मानता हूँ
पर ... मैं सुनता हूँ
चेले होना भी गर्व की बात होती है
कुछ लोग हैं ... जो बगैर चेलों के
चलते ही नहीं ... बढ़ते ही नहीं
और तो कुछ हैं ... जो खुद
एक-दूसरे के चेले बन जाते हैं
आजकल ... बगैर चेलों के
काम चलता भी कहाँ है
किसी का चेला होना
और किसी का चेला हो जाना भी तो
अपने आप में एक 'हुनर' है
कभी-कभी सोचता हूँ ... बन जाऊं
चेला किसी का ... या बना लूं
चेला किसी को ... पर
ठहर जाता हूँ ... सहम जाता हूँ
चेलागिरी को देख कर
आत्मा, मन, दिल ... गवारा नहीं करते
पर ... जानता हूँ ... मानता हूँ ... आजकल
चेला, चेली, चेले, चेलागिरी का
अपना ... एक अलग ही महत्त्व है !!
2 comments:
चेला या चैला (लकड़ी)
चेलागिरी में जगत समाया है।
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