'खुदा' की रहमत ने, सच ! बाजीगर बना दिया है मुझे
कदम कदम पर जिन्दगी, किसी बाजी से कम नहीं !
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मेरी इबादत ने, उसे देवी बना दिया था 'उदय'
जब से छोड़ दी इबादत मैंने, वो सड़क पे है !
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कब तलक लड़ते रहेंगे, भाषाओं की ज़ुबानी जंग
कहीं कुछ फर्क नहीं दिखता, तेरे मेरे जज्बातों में !
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सुकूं की चाह में, श्मशान में जा बैठे थे
कहां था इल्म, वहां भी सुकूं नहीं होगा !
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'रब' जाने, क्या संभव और क्या असंभव है
सच ! हम तो चलते हैं, बस चले चलते हैं !
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सच ! मौके मौके पे, वो मुझे याद कर लेते हैं
गर जरुरत न रहे, तो वे खुद ही 'खुदा' होते हैं !!
6 comments:
सुकूं की चाह में, श्मशान में जा बैठे थे
कहां था इल्म, वहां भी सुकूं नहीं होगा !
होता है, होता है!
आरे वाह भाई जी ....क्या बात कही है !!!!!!!!!!!
जबाब नही जी आप की गजल का, बहुत सुंदर. धन्यवाद
बड़ी सटीक पंक्तियाँ।
मेरी इबादत ने, उसे देवी बना दिया था 'उदय'
जब से छोड़ दी इबादत मैंने, वो सड़क पे है !
Bahut khoob! Waise sabhee ashaar ekse badhake ek hain!
मेरि तरफ से मुबारकबादी क़ुबूल किजिये.
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