Sunday, April 24, 2011

... शहर में कौन नहीं है, जो तुझे जानता नहीं !

मुंह फेर के नहीं, आशिकी में खुद को आजमा रहा है
कहीं, किसी न्यूज एंकर को देख लार टपका रहा है !
...
जब सरहद पार तक, उठती रही निगाह तेरी
फिर बच्चों का कुसूर क्या, दहलीज पार जो हुए !
...
सुनते हैं, चाहतों के मजहब नहीं होते
आशिकी में, उम्र के बंधन नहीं होते !
...
क्या हुआ, जो हम, तुझपे फना हुए
जो हुए थे, उनका ज़रा कुसूर तो बता !
...
किसी ने कर लिया गुनाह, पता पूंछ के तेरा
शहर में कौन नहीं है, जो तुझे जानता नहीं !
...
किसी ने गिरा लिया खुद को, तेरी निगाह में
खता इतनी ही रही, कुछ घड़ी का सांथ चाहा था !

6 comments:

Dinesh Mishra said...

वाह.... क्या बात है !

Dinesh Mishra said...
This comment has been removed by the author.
प्रवीण पाण्डेय said...

वाह वाह।

Amit Chandra said...

सारे शेर एक से बढ़कर एक है। आभार।

राज भाटिय़ा said...

जब सरहद पार तक, उठती रही निगाह तेरी
फिर बच्चों का कुसूर क्या, दहलीज पार जो हुए !
वाह वाह जनाब जबाब नही, बहुत खुब

संजय भास्‍कर said...

एक से बढ़कर एक सारे शेर