Thursday, April 14, 2011

... कोई जागा, सवालों के कटघरे में है !!

जात-पात की डमरू देखो, बज रही है चारों ओर
झूम रहे हैं, नांच रहे हैं, जात-पात के ठेकेदार !
...
जिन्होंने जन्म लिया है भ्रष्टाचार की कोख से
उफ़ ! वे नहीं मानेंगे, वे बहुत संस्कारी हुए हैं !
...
सच ! जुल्म होते रहे, लोग सहते रहे
कोई जागा, सवालों के कटघरे में है !
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खुदगर्जी का है आलम जहां में, खुदगर्जी की सौगातें हैं
खुदगर्जी के रिश्ते-नाते, और है खुदगर्जी का याराना !
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सच ! किसी के कद से, उसकी उम्र का अंदाजा लगाया जाए
बेहतर होगा, क्यों उसके जज्बे और इरादे भांप लिए जाएं !
...
दिल की कहते रहे, दिल की सुनते रहे
जब जब मौक़ा मिला, दोनों खामोश रहे !
...
होने को तो हूँ मैं, यहीं कहीं
होने को, फिर कहीं नहीं हूँ !
...
सोचने मजबूर हूँ, क्यूं तुझे चाहा सदा
और भी तो थे बहुत, मेरी तनहा राह में !
...
भूल मैं बैठा था खुद को, एक तेरी ही चाह में
नींद से जागा लगे है, जब से ठोकर खाई है !
...
मेरी राहों में सनम, अब तुम आया करो
जख्म जो तुमने दिए थे, अब हैं वो भरने लगे !

3 comments:

Unknown said...

उदय जी आपने काफी अच्छा कहा है। इसी विषय पर मैंने भी कुछ लिखा है-
भले को भला कहना भी पाप

संजय भास्‍कर said...

वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा

संजय भास्‍कर said...

तारीफ के लिए हर शब्द छोटा है - बेमिशाल प्रस्तुति - आभार.