Thursday, March 31, 2011

... टूटते ही हुस्न के, हांथों को है महका रहा !!

मौके मौके की बात है, कोई मौके पे, तो कोई मौके से
ये और बात है, अक्सर मौकापरस्ती काम आती है !
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काश कुछ पल को, तुम अपने जहन में मुझे भी पनाह दे देते
जाने क्या सहेजा है तुमने, जो तुम्हें बाहर आने नहीं देता !
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धूल, मिट्टी, कीचड में, आज भी सनी रक्खी हैं यादें तेरी
जब जब याद आये तू, खुशबू--मिट्टी में डूब जाता हूँ !
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भंग, रंग, गुलाल, और हठेली गोपियों की शरारतें
उफ़ ! पिछले साल का सुरूर अब तक उतरा कहाँ है !
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समय के सांथ प्यार भी, भ्रष्टाचार की चपेट में है
भावनाएं, मर्यादाएं, समर्पण, अब दिखते कहाँ हैं !
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बड़े इत्मिनान से, तराशा गया है तुझे
सिर से पाँव तक क़यामत सी लगे है !
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टेसु, सेमल, फूल, रंग, गुलाल, रंगोली
सच ! हमें तो लगे है, गई है होली !
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सुना है इतनी नजदीकियां भी अच्छी नहीं होतीं
हे 'भगवन', कहीं किसी की नजर लग जाए !
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शाख से तोड़ा गया, ये फूल खुशनसीब था
टूटते ही हुस्न के, हांथों को है महका रहा !!

1 comment:

Arun sathi said...

खूबसुरत। खास, शाख से टूटे फूल खुशनसीब थे।