Thursday, March 31, 2011

... सफ़र बांकी भी है, और दर्द की कोई इन्तेहा नहीं !!

कब तक तलाशोगे खुद को, खुदी की तन्हाईयों में 'उदय'
ज़रा निकलो, देखो, किसी को तुम्हारा इंतज़ार है बाहर !
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अब क्या दोस्त, और क्या दुश्मनी
सच ! दोनों पे हमें एतबार रहा !
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सदियों से मेरी यादों में, बसर है तेरा
कोई पूछे जो पता, क्या बताएं हम उसे !
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अब दोस्ती और दुश्मनी में भी, खुदगर्जी का आलम है 'उदय'
दोनों बातें और चालें चलते हैं, अपने अपने फायदे के लिए !
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दिलचस्प ! कहीं कुछ पुरानी टीस रही होगी
वरना कौन, यूं ही पुरुस्कारों से भागता है !
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तुम मुझे गुलाब, और गुलाब की खुशबू सी लगती हो
वरना कोई और वजह नहीं दिखती, तुमसे मोहब्बत की !
...
मुझे खुद को खबर नहीं, कि कौन हूँ मैं
सच उलझा हुआ हूँ, खुदी को ढूँढने में !
...
चलो कुछ देर सांथ सांथ मुस्कुरा लें हम
तुम्हारे सांथ होने से सफ़र आसां होगा !
...
जख्म अब अपने किस किस से हम छिपाते फिरें
सफ़र बांकी भी है, और दर्द की कोई इन्तेहा नहीं !!

3 comments:

Patali-The-Village said...

जख्म अब अपने किस किस से हम छिपाते फिरें
सफ़र बांकी भी है, और दर्द की कोई इन्तेहा नहीं !!
बहुत सुन्दर...

Apanatva said...

चलो कुछ देर सांथ सांथ मुस्कुरा लें हम
तुम्हारे सांथ होने से सफ़र आसां होगा !

bade acche lage sabhee sher khas tour par ye....

प्रवीण पाण्डेय said...

दर्द सफर का होना ही है,
जीवन अपना ढोना ही है।