गर मैं उतर जाऊं जमीं पे, तो यकीं नहीं होगा
लोग पत्थर को पूजेंगे, तो मैं 'खुदा' कहलाऊँ !
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सच ! सौ काम छोड़कर भी, हम दौड़े चले आते !
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जिसको जाना था, ठहरा नहीं, चला गया
अब तो यादों में ही रहेगा बसेरा उसका !
...अब क्या कहें, दिल तो चाहे था मेरा, शब्दरूपी रंग-गुलाल संग
तेरे दिल, मन, और जज्बातों को रंग रंग के कहता हैप्पी होली !
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सोचूँ तो बस सोचता रहूँ, फिर कहाँ ठहरती है सोच मेरी
कहीं कुछ तो है जरुर, जो मेरी सोच को ठहरने नहीं देता !
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ये तो किन्हीं नासमझों ने, आत्मघाती पहल की है
उफ़ ! डरना, और डर कर, डराने की कोशिश की है !
3 comments:
जो भी डरा ले जाये।
गर मैं उतर जाऊं जमीं पे, तो यकीं नहीं होगा
लोग पत्थर को पूजेंगे, तो मैं 'खुदा' कहलाऊँ !
बहुत खुब जी.
उदयजी एक एक शेर लाजबाब। खास कर खुदा कहायेगे। कितनी गंभीर बात कही। यही होगा।
बधाई।
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