सच ! तेरे छूने भर से मैं छुई-मुई सी हो जाती हूँ
न जाने कब, सिकुड़ती, खिलती, बिखरती हूँ !
...
ईमानदारी का लिबास पहन के, कोई धूप में खडा है
बहुत देर से लड़ रहा है चलो उसका हौसला बढाया जाए !
...
कल तक, हम नाज करते रहे देखकर सूरत तेरी
आज मालूम हुआ, लजीज नहीं थी सीरत तेरी !
...
देख के तो नहीं लगता, भूख लगी है इनको
शायद, कल के लिए, पार्सल करवा रहे होंगे !
...
सभी अपने अपने मिजाज के लेखक रहे हैं
किसी का, किसी से, मेल-जोल संभव नहीं !
...
बहुत कर ली हमने, गद्दारी वतन से
चलो आज घर का सौदा किया जाए !!
...
मठ, गुरु, शिष्य, परम्पराएं, मठाधीश, स्वयं-भू
उफ़ ! क्या कहने, कोई सफल, तो कोई असफल है !
...
गुंडे, नेट की गुंडई, गुंडागिर्दी, क्या बात है
चलो ठीक है, कुछ लोग खौफजदा हुए हैं !
...
न जाने कब, डर, आँखों से, जहन में उतर आया है
अब कोई कुछ भी कहे, जिन्दगी खौफ का मंजर है !
...
पीठ, कमर, पेट, बांहें, टांगें, गर्दन, नाभी, टैटू ही टैटू
उफ़ ! औरत का बदन, बदन न हुआ, शो-रूम हुआ है !!
6 comments:
श्याम भाई, कलमधार तगड़ी है
एक-एक शेर की मार गहरी है ।
अब मजा आ रहा है पढ कर,
आभार
गज़ब के शेर हैं गहरा वार करते हैं।
ईमानदारी का लिबास पहन के, कोई धूप में खडा है
बहुत देर से लड़ रहा है चलो उसका हौसला बढाया जाए ..
वाह गज़ब का शेर है ... लाजवाब ...
बहुत अच्छा।
महिलाओं को विज्ञापन की वस्तु ही समझा जा रहा है आज के दौर में।
सच में कडवा सच।
पीठ, कमर, पेट, बांहें, टांगें, गर्दन, नाभी, टैटू ही टैटू
उफ़ ! औरत का बदन, बदन न हुआ, शो-रूम हुआ है !! ...oh...gajab....excellent...kyaa kahun shabd nahii hai.
बहुत ही दमदार अभिव्यक्ति।
Post a Comment