Tuesday, March 29, 2011

... सिर्फ खुबसूरती पे, तुम अब नाज न करो !!

सच ! खतों का सिलसिला तो अब चलते रहेगा
ज़रा फुर्सत निकाल के, कहीं मिल लिया जाए !
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काश हर किसी को मनमाफिक सल्तनत मिल गई होती
उफ़ ! अब क्या कहें, कौन होता जो नहीं सुलतान होता !!
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मौक़ा सुनहरा है, काश दम-ख़म लगा दें सब खिलाड़ी
एक बार फिर से, हम विश्व क्रिकेट के सरताज बन जाएं !
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सच ! ये माना हमारे दरमियां, वक्त का फासला हुआ लंबा
कर अफसोस, किसी दिन वक्त को भी हम आजमाएंगे !
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हमने तो लिखकर संदेशा, वक्त पर ही भेज दिया था तुम्हें
'रब' जाने, तुम तक पहुंचते पहुंचते, क्यूं इन्तेहा हो गई !
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देखते, देखते, जाने कब, कट जाएगा ये सफ़र
जब मिलना ही है हमें, फिर तब क्या, कब क्या !
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चल पडी ये परिपाटी, कुछ नाशुकरों की चाल से
महापुरुषों का ही क्या, सारे वतन का ये हाल है !
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कोई हौले हौले, कुछ कहे बगैर, हमसे दूर चला गया
उफ़ ! गया भी इतनी दूर, लौट आना मुमकिन नहीं !
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आईना, दिल, खुशी, गम, दीवानगी, कहानी
उफ़ ! न जाने कब तलक हम खामोश बैठेंगे !
...
सच ! हम तो दीवाने हैं सदियों से तेरे
सिर्फ खुबसूरती पे, तुम अब नाज करो !!

1 comment:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सच ! ये माना हमारे दरमियां, वक्त का फासला हुआ लंबा
न कर अफसोस, किसी दिन वक्त को भी हम आजमाएंगे !

बहुत खूब