जी तो चाहे है, तुम्हें बना लूं अपना
फिर खुबसूरती देख ठहर जाता हूँ !
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मान भी जाओगे बुरा, तो मान जाओ
सच ! क्या फर्क, बुरा न मानो होली है !
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उफ़ ! क्या अंदाज, और क्या नजाकत संग खुबसूरती है
जी चाहता है, आज समोसे-चटनी का दौर हो जाए !
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जी तो चाहे है, काश ! सिर्फ हम तुम
दो घड़ी बैठ के, दो कप काफी पी लें !
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सपने तो सपने होते हैं, कुछ मीठे, कुछ तीखे होते हैं
होना है साकार सभी को, कुछ आज, तो कुछ कल होना है !
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तू नहीं, तेरे एहसास ही सही
मेरे जज्बातों में बसर है तेरा !
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गिले, शिकबे, समस्याएं, आलोचनाएं, समालोचनाएं
सच ! बहस होते रही, होते रहेगी, चलो छोडो, आगे बढ़ें !
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जिन्दगी, हर्ष, संघर्ष, गर्व, गरीबी, अमीरी, सुख, दुख
टुकड़ों टुकड़ों, हिस्सों हिस्सों में, है जिन्दगी का बसेरा !
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हर रोज, मुझे तुम, वैसी ही लगती हो, जैसे रोज लगती हो
पर कभी वैसी नहीं लगतीं, सच ! जैसे पहली बार लगी थीं !
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लेखन किसी जादूगरी से, कहीं कुछ कम नहीं है 'उदय'
सच ! फर्क इतना ही है, उतने तमाशबीन नहीं मिलते !!
2 comments:
बेहतरीन प्रस्तुति
तमाशबीन न मिलें, कद्रदान बहुत मिलेंगे।
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