लड़ने को तो जहां से कहो, वहां से लड़ लें
मगर अफसोस ! बेईमान हुआ नहीं जाता !
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दौलतें तो बहुत समेट कर, किसी ने रख लीं थीं 'उदय'
उफ़ ! मगर अफसोस, कोई चला गया, सब छूट गईं !
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पता नहीं क्या सोच कर, 'रब' ने तराशा है तुम्हे
उफ़ ! अब तुम ही बताओ, क्यों न चाहें हम तुम्हें !
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दाम की पर्चियां देख देख कर भी ज़िंदा हैं
सच ! मंहगाई तो जान लेने पर उतारू है !
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क्या दिल में, क्या दिमाग में, उथल-पुथल है 'उदय'
सच ! कोई कहे, या न कहे, क्यों न बयां कर दें हम !
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इस मुस्कराहट पर, 'रब' सदा मेहरबान रहे
कोई मुस्कुराता रहे, पर सदा मेरे साथ रहे !
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कितनी मुद्दत से एक चाह रही, एक ऐसी सब हो
हम, तुम, सुहानी सब, बस तुम्हें हम देखते रहें !
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आज की सब, हमें तो सुहानी सी लगे है
सच ! तुम न सही, तुम्हारी यादें ही सही !
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न जाने क्यों तुम्हारे बगैर मुझे अच्छा नहीं लगता
तुम जब होते हो साथ, जिन्दगी खुशनुमा होती है !
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कुर्सी, धन-दौलत, झूठी शान-शौकत, खंडित मान-मर्यादा
सच ! इन्हीं के इर्द-गिर्द, भटकते लोकतंत्र के हिमायती !
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बेशर्मी की हद हो गई ! सब जानते थे, वह भ्रष्टाचारी है
उफ़ ! फिर भी पंचायती के लिए, उसे पंच बना दिया !!
4 comments:
बेशर्मी की हद हो गई ! सब जानते थे, वह भ्रष्टाचारी है
उफ़ ! फिर भी पंचायती के लिए, उसे पंच बना दिया !!
वाह जी सच कहा आप ने, बहुत सुंदर रचना, धन्यवाद
बहुत सार्थक और सटीक चोट...
बेशर्मी की हद हो गई ! सब जानते थे, वह भ्रष्टाचारी है
उफ़ ! फिर भी पंचायती के लिए, उसे पंच बना दिया !!
बहुत सार्थक और सटीक रचना| धन्यवाद|
आपका आक्रोश समझ में आता है।
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