Friday, February 18, 2011

मुन्नी की बदनामी पर अरबाज खूब मुस्कुरा रहे हैं ... !!

कोई कुछ भी कहे, कहता रहे, हम कैसे मान लें
सच ! मेरे महबूब सा कोई दूजा नहीं है !
...
आज शहर में भीड़ बहुत है, जाने क्या मंजर है
हे 'खुदा' रहम करना, मेरा महबूब निकला हो !
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ये तुम्हारी संजीदगी भरी बातें
सच ! हमें चैन से जीने नहीं देतीं !
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सच ! फना तो हम हो गए थे तभी
जब तूने दो घड़ी बैठ के बातें की थीं !
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जाने क्या छिपा रक्खा है तूने हुश्न में अपने
तेरे जिस्म से अक्सर एक खुशबू महकती है !
...
खामोशी, तन्हाई, सुकूं, जुबां, दिल, टीस
उफ़ ! सब ने मिलकर एक कहानी बयां कर दी !
...
हम ने बहुत बसर कर ली, जिन्दगी तल्ख़ धूपों में
अब तो चाहूं जिन्दगी तेरी जुल्फों की घनी छाँव तले !
...
शर्म इतनी बढी कि खुद शर्मसार हो लिए
गर करते ऐसा, तो कोई और कर देता !
...
कुछ लोगों ने कुंठा इस कदर पाल रक्खी है
सच ! जैसे वर्षों की जमा पूंजी हो !
...
मुन्नी की बदनामी पर अरबाज खूब मुस्कुरा रहे हैं
उफ़ ! शौहरत के लिए बेगम को नचवा रहे हैं !!

4 comments:

संजय भास्‍कर said...

---- सुंदर, सटीक और सधी हुई बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।
मेरे पास शब्द नहीं हैं!!!!तारीफ़ के लिए

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

खामोशी, तन्हाई, सुकूं, जुबां, दिल, टीस
उफ़ ! सब ने मिलकर एक कहानी बयां कर दी !

बहुत खूब ..और शोहरत वाला शेर तो बस कमाल ही है ..

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

शर्म इतनी बढी कि खुद शर्मसार हो लिए
गर न करते ऐसा, तो कोई और कर देता !
ऐसा नेताओं के साथ हो जाये तो सच मजा आ जाये.

राज भाटिय़ा said...

मुन्नी की बदनामी पर अरबाज खूब मुस्कुरा रहे हैं
उफ़ ! शौहरत के लिए बेगम को नचवा रहे हैं !!

सहमत हे जी शौहरत ओर पैसो के लिये...
बहुत सुंदर गजल, धन्यवाद