Thursday, February 17, 2011

आज पुराने दिन ..... ऐश्वर्या आँखों में रहती थी !!

सच ! शर्मसार होने का एक अलग ही लुत्फ़ है
अब कोई इसे लाचारी समझे तो हम क्या कहें !
...
सोच रहा हूँ, मौसम दिलकश हुआ है
क्यूं बैठकर, एक एक कुल्फी खा लें !
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मुंबई में बैठी है महबूबा मेरी
उफ़ ! इतने दूर चला नहीं जाता !
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कल किसी ने मजबूरियों की आड़ में सब कह दिया
उफ़ ! चुपचाप, सब के सब खामोश बन सुनते रहे !
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सच ! नाक में दम कर रक्खा है, इस चंडाल चौकड़ी ने
क्या करें, सब लंगोटिया यार हैं, छोड़ा भी नहीं जाता !
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कल किसी ने कह दिया, सीना ठोक कर मजबूर हैं
गर दम है किसी में, उखाड़ ले, जो उखाड़ना चाहे !
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कोई कह रहा था सभी भ्रष्टाचारी निष्फिक्र हैं
जेल, सरकारी गेस्ट हाऊस से कम नहीं हैं !
...
सारे दिन आमने - सामने बैठे रहे
उफ़ ! कुछ बोले, गुमसुम से रहे !
...
जाने किस उम्मीद से तोड़ा था दिल मेरा
उफ़ ! अब बड़ी गुमसुम सी बैठी है !
...
आज पुराने दिन याद गए
सच ! ऐश्वर्या आँखों में रहती थी !!

8 comments:

Anjan Singh said...

उदय जी बहुत खूब लिखा है आप ने. जो व्यंग किया है सरकार पर बहुत खूब!!! लेकिन ये सरकार इतनी निर्लज है की इसे कुछ फर्क नहीं पड़ता चाहे कुछ भी कह लो... फर्क पड़ेगा हमारे सोंचने से, और इसके किये आपके इस सार्थक प्रयास के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

उदय जी,
कोई कह रहा था सभी भ्रष्टाचारी निष्फिक्र हैं
जेल, सरकारी गेस्ट हाऊस से कम नहीं हैं !
...
सच में बड़ी आग है आपकी लेखनी में !

Unknown said...

बहुत सटीक बात उदय भाई ...... क्या मजबूरी है की इज्जत भी बेच दे ही पर्दापोशो ने

Unknown said...

बहुत सटीक बात उदय भाई ...... क्या मजबूरी है की इज्जत भी बेच दे ही पर्दापोशो ने

satyendra said...

कोई कह रहा था सभी भ्रष्टाचारी निष्फिक्र हैं
जेल, सरकारी गेस्ट हाऊस से कम नहीं हैं !

जबरदस्त।

vandana gupta said...

वाह! बहुत ही बढिया प्रस्तुति।

Satya Vyas said...

पहली बार आपके ब्लौग पर् आया : और इस उफ्फ ने.. अब क्या कहु दिल जीत लिया

प्रवीण पाण्डेय said...

व्यंग पर सच।