तन, मन, ह्रदय, आकर्षण, समर्पण
सच ! सब मिल कर खिले है प्रेम-पुष्प !
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लाख समझाने पर भी कोई मानता कहाँ है
तेज भागे, सड़क पर यमदूत से जा भिड़े !
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क्या खूब इम्तिहां लिया है किसी ने प्यार का
आंसू झड़ते रहे, उम्मीद रही ! थम गए, उफ़ !!
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बड़ी बेरहमी से मुस्कुरा के क़त्ल कर दिया
बड़े जालिम हैं लोग, दो घड़ी आंसू बहा लेते !
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तुम्हें देखें या चमकते ताज को
कहीं कुछ भ्रम सा पैदा हुआ है !
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कोई न भी कहता, तब भी हम फना हो जाते
सच ! गर तुमने मुड़कर मुस्कुराया न होता !
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अब दुनिया को जो समझना है समझे
हमें तो हो गया है प्यार, बेइंतेहा तुमसे !
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सारा शहर गुनहगार साबित करने में लगा है
कोई समझाये उन्हें, मैं इस शहर का नहीं हूँ !
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जब प्रेम का दरिया, या आक्रोश का सैलाव
जहन में उमड़ने लगे, तो समझो 'कविता' !
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उफ़ ! सारी रात बदन तप तप तपता रहा
ऐसा लगे, कोई ख़्वाब अधूरा रह गया हो !!
5 comments:
अच्छी रचना। प्रेम की बेहतरीन प्रस्तुति।
uff kya sher kahe hai
Wah wah
जब प्रेम का दरिया, या आक्रोश का सैलाव
जहन में उमड़ने लगे, तो समझो 'कविता'
निकली दिल की बात
कोमल अहसासों से परिपूर्ण एक बहुत ही भावभीनी रचना जो मन को गहराई तक छू गयी ! बहुत सुन्दर एवं भावपूर्ण प्रस्तुति ! बधाई एवं शुभकामनायें !
प्रेम का सुखद अनुभव।
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