पत्थर समझ हांथ में उठाया तो हम जान गए
सच ! आज अपनी या किसी और की खैर नहीं !
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उम्मीद, इंतज़ार, प्यार, क्या खूब महबूब है तेरा
उफ़ ! सामने रहकर भी, बातें नहीं करता !
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सच ! सच्ची खबरें, जब से अटपटी हुई हैं 'उदय'
लोग ठोक-पीट कर, उन्हें चटपटा बनाने में लगे हैं !
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'दो टूक' बातें दमदार तो हैं 'उदय'
सच ! पर ज़रा करारी कम लगे हैं !
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झूठ के पत्थर हांथों में लिए हैं
उफ़ ! ज्ञान की गठरी भारी लगे है !
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लोग क्रीम, क्रीमी लेयर में उलझे हुए हैं
उफ़ ! मजलूम की आहें, दिखती नहीं हैं !
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खरीद फरोख्त का दौर है, नामों में क्या रक्खा है
थोड़ा खुद को बेच दें, थोड़ा किसी को खरीद लें !
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देखो, संभलो, खुद को संभालो यारो
इश्क ! सुनते हैं, आग का दरिया है !
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घुटने टेक कर हम तुम्हें सलाम करते हैं
आप हमारे माई-बाप हैं प्रणाम करते हैं !
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कोई खुद को बदले या न बदले 'उदय'
सच ! देश की खातिर, हम खुद को बदल लें !
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कोई अफसोस नहीं, और न खंगाला जाए
बिक ही रहे हैं तो सही दाम लगाया जाए !
5 comments:
शानदार व्यंग्य ! आज का आइना !
झन्नाट व्यंग।
कोई अफसोस नहीं, और न खंगाला जाए
बिक ही रहे हैं तो सही दाम लगाया जाए !
Theek hee hai!
सहमत हे जी, इस अति सुंदर रचना से
करारी चोट..
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