उफ़ ! अब इसे विडंबना कहें या शौक, मौजे ही मौजे हैं
दिखाने को तो देश, पर खेल तो खुद के लिए, ही रहे हैं !
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ज़िंदा तो है वो, तेरे प्यार के साए में
जीते भी वही हैं, जो प्यार कर रहे हैं !
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गुस्ताखी हो गई, माफ़ करना हुजूर
पहचान नहीं पाया, मैं नशे में था !
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सच ! जिन ताजों पे, तानाशाहों की हुकूमत है
वे तानाशाह उन ताजों के कद्रदान नहीं लगते !
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याद है मुझे, मैं सिहर सा गया था, जब तुमने
चुपके से, मेरे कान में, आई लव यू कहा था !!
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अबे तू अकेला नहीं है, जिसका विदेश में खाता है
डर मत, कोई हल निकल जाएगा, तू रोता क्यों है !
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अब क्या सुनाएं दास्तां अपनी, खुद की ज़ुबानी
सच ! सुना है लोग, अपनी ही, चर्चा में लगे हैं !
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सच ! जल्द कालेधन का, कुछ उपाय कर लो यारो
जनता भड़क रही है, अब बच पाना मुश्किल लगे है !
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हम तो बैठे थे, सिर्फ सुनने तुमको
न जाने क्यों, तुम ही खामोश रहे !
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उफ़ ! काबिल लोग, इस देश के लायक नहीं हैं
क्यों न किसी नालायक को लायक माना जाए !!
5 comments:
उफ़ ! काबिल लोग, इस देश के लायक नहीं हैं
क्यों न किसी नालायक को लायक माना जाए !!
Bahut badhiya upaay hai!
क्या करें, भरोसा उसी स्तर का रह गया है।
सुन्दर एवं सार्थक रचना
हम तो बैठे थे, सिर्फ सुनने तुमको
न जाने क्यों, तुम ही खामोश रहे !
vAh vAh..
आप कही मनमोहन जी की बात तो नही कर रहे:)
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