शराफत बेच के सियासत में लगे हैं लोग
'रब' जाने, अब इस वतन का क्या होगा !
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चैनल की बढ़ी टीआरपी, किसी धोखे से कम नहीं
सच ! रिमोट की करामात है, कई मुगालते में हैं !
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एक अर्सा हुआ खुशी के कहकहे नहीं सुने
उफ़ ! क्या करें, चहूँ ओर घोटाले ही घोटाले हैं !
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शिकबे, गिले, दूरियां, आरजू, तमन्नाएं
छोडो इन्हें, आओ हंस के गले मिल लें !
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कोरे पन्नों पे कलम घसीटी, एक हुनर है 'उदय'
सच ! ऐसे हुनरमंदों को दिल से नवाजा जाए !
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तेज व सर्द तूफानी हवाएं, चलने दो कोई बात नहीं
सच ! बढ़ रहे घोटालों की लपटें उन पर भारी पड़ेंगी !
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ताउम्र जिसे दर्द समझ हम छिटकारते रहे
उफ़ ! आज मुश्किल घड़ी में, वो हमदर्द निकला !
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किसी ने जिद मचा दी, वफ़ा पहचानने में
उफ़ ! मायूस हुआ, कोई फरेबी निकला !
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सच ! ये देश है अपना, इसे हम ही बचायेंगे
भ्रष्टाचारियों को, सब मिलकर धूल चटायेंगे !!
5 comments:
bahut khub...abhi jaldi me hoon....isliye itna hi...:)
अपने पापों से कौन अछूता रहा है।
किसी ने जिद मचा दी, वफ़ा पहचानने में
उफ़ ! मायूस हुआ, कोई फरेबी निकला !
यह फ़रेबी कोन हे? कही हमारे मन.... तो नही. बहुत ही सुंदर रचना धन्यवाद
आपके उफ और सच तो कमाल ढ़ाते हैं..
फिर से प्रशंसनीय रचना - बधाई
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