कोई कहता रहा जिन्दगी किताब है मेरी
उफ़ ! वक्त नहीं था, पढ़ नहीं पाए !
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उसे यकीं नहीं था मौत का मेरी
उफ़ ! कब्र को टटोलने आती है !
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उफ़ ! क्या गजब ढातीं हैं सहेलियां तेरी
तुम मिलती हो, और नहीं भी मिलतीं !
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उसे गम था, और नहीं भी था
दिल जो टूटा था, वो मेरा था !
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क्या कहें, अफसोस है, वो उसूलों में रहा
सच ! नहीं तो आज, वो सरताज होता !
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कौन मानले, वो बहुत बड़ा है 'उदय'
सच ! हांथ छोटे हैं उसके, नीचे नहीं आते !
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चलो कुछ कदम और, हम साथ साथ चल लें
सच ! फिर मंजिलें जुदा जुदा हैं !
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'उदय' कहता है चाहतों की घड़ी मुक़र्रर नहीं होती
जब जज्बात उमड़ ही आये हैं, चाहतें बयां कर दो !
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धधक कर फटने दो, अब दर्द धरती का 'उदय'
उफ़ ! मजलूम की आहें, अब ज़िंदा कहाँ हैं !
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बिस्तर, खिड़की, रोशनी, और सुबह का मंजर
सच ! जहन में आज भी माँ का बसेरा है !
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तुम्हारी नींद को देखें, या देखें तुम्हें अब हम
सच ! तुम्हारे जागने से, मेरी रातें सुहानी हैं !
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नेता, अफसर, मंत्री, ने खूब गुल खिलाये हैं 'उदय'
सच ! तब ही तो प्राथमिकी में नाम दर्ज कराये हैं !
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सच ! गर तूने रश्में प्रेम की निभाई होतीं
'उदय' जाने, ये मंजिलें न जाने कहाँ होतीं !
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सच ! आज की सब, बहुत मीठी लगी है
किसी ने मिलने की, खुद से पहल की है !
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कोई चाहता है समेटना मुझको, खुद में
सच ! किसी ने उम्मीद में बांहें बिखेरी हैं !
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शैतानी रूह भी कांप जाती थी देख कर मुझको
सच ! माँ का साया था, हौसला था मुझमें !
8 comments:
हर नज्म बेहतरीन.....सुन्दर प्रस्तुति.
बहुत अच्छी रचना . आभार .
शैतानी रूह भी कांप जाती थी देख कर मुझको
सच ! माँ का साया था, हौसला था मुझमें !
बिल्कुल सही कहा! मां का अशीष हो तो हम बड़ी से बड़ी मुश्किलें पार कर जाते हैं।
बहुत ही सुन्दर....आभार.
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उदय जी आजकल कुछ नाराज चल रहें है क्या, आपका ब्लॉग पर स्वागत रहेगा-अरविन्द जांगिड.
माँ का आशीर्वाद बहुत है, जूझने के लिये।
बेहतरीन भाव, सुन्दर शब्दों के साथ..
बिस्तर, खिड़की, रोशनी, और सुबह का मंजर
सच ! जहन में आज भी माँ का बसेरा है !
हर एक पँक्ति मे सुन्दर भाव हैं। बहुत अच्छी लगी रचना। बधाई।
शब्द जब भाव मेँ बदल जाए तो, तो शब्द बन जाते है अनमोल।
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