Wednesday, January 5, 2011

किसी ने बताया, लोकतंत्र है, जन्म से गूंगा-बहरा है !!

नया साल गया है, यार कैसे चुपचाप बैठे हो
डरो मत, चलो करें, मिलकर एक और नया घोटाला !
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खेल नया कुछ नहीं, बस शब्दों का करतब है यहाँ
शब्दों की जादूगरी तो है, पर जादूगर नहीं हूँ मैं !
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चलने दो भ्रष्टाचार, अपने देश की जनता है, कोई फर्क नहीं
थोड़ा-बहुत चिल्लायेगी, फिर खुद के दुख-दर्द में उलझ जायेगी !
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टी.वी.वालों ने तंग कर रक्खा है, अच्छा सुनते नहीं हैं
बुरा बोलो तो कुछ का कुछ समझ, ब्रेकिंग बना देते हैं !
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हम तो बेवजह ही उसे, बुरा-भला कह रहे थे
किसी ने बताया, लोकतंत्र है, जन्म से गूंगा-बहरा है !

10 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

व्यवस्था में मिली कड़ुवाहट, रह रह कर उभरती है आपके शब्दों में।

आपका अख्तर खान अकेला said...

thik rhaa naa bhai sahb isiliyen to ab aap khush he suprbhaat. akhtar khan akela kota rajsthan .

संजय कुमार चौरसिया said...

nahut sahi kaha aapne

Arvind Jangid said...

सुन्दर अभिव्यक्ति

Sushil Bakliwal said...

चाहिये जैसी छेडछाड कर लो. ये तो अपना लोकतंत्र है जो जन्म से ही गूंगा बहरा है ।

संजय भास्‍कर said...

गहरी बात कह दी आपने। नज़र आती हुये पर भी यकीं नहीं आता।
... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

उदय जी,

सही कहा,लोकतंत्र है , जन्म से गूँगा बहरा है !

कुछ स्वार्थी लोगों ने इसे ऐसा बना दिया है !

सार्थक पोस्ट !

-ज्ञानचंद मर्मज्ञ

Deepak Saini said...

Sare Sher Dhad rahe hai

अरुण चन्द्र रॉय said...

वाकई आज के हालात को देख यही लगता है कि लोकतंत्र गूंगा और बहरा है..

Unknown said...

very right .....