नया साल आ गया है, यार कैसे चुपचाप बैठे हो
डरो मत, चलो करें, मिलकर एक और नया घोटाला !
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खेल नया कुछ नहीं, बस शब्दों का करतब है यहाँ
शब्दों की जादूगरी तो है, पर जादूगर नहीं हूँ मैं !
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चलने दो भ्रष्टाचार, अपने देश की जनता है, कोई फर्क नहीं
थोड़ा-बहुत चिल्लायेगी, फिर खुद के दुख-दर्द में उलझ जायेगी !
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टी.वी.वालों ने तंग कर रक्खा है, अच्छा सुनते नहीं हैं
बुरा बोलो तो कुछ का कुछ समझ, ब्रेकिंग बना देते हैं !
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हम तो बेवजह ही उसे, बुरा-भला कह रहे थे
किसी ने बताया, लोकतंत्र है, जन्म से गूंगा-बहरा है !
10 comments:
व्यवस्था में मिली कड़ुवाहट, रह रह कर उभरती है आपके शब्दों में।
thik rhaa naa bhai sahb isiliyen to ab aap khush he suprbhaat. akhtar khan akela kota rajsthan .
nahut sahi kaha aapne
सुन्दर अभिव्यक्ति
चाहिये जैसी छेडछाड कर लो. ये तो अपना लोकतंत्र है जो जन्म से ही गूंगा बहरा है ।
गहरी बात कह दी आपने। नज़र आती हुये पर भी यकीं नहीं आता।
... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।
उदय जी,
सही कहा,लोकतंत्र है , जन्म से गूँगा बहरा है !
कुछ स्वार्थी लोगों ने इसे ऐसा बना दिया है !
सार्थक पोस्ट !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
Sare Sher Dhad rahe hai
वाकई आज के हालात को देख यही लगता है कि लोकतंत्र गूंगा और बहरा है..
very right .....
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