Tuesday, December 7, 2010

खा रहे रोटी वतन की, कर रहे सौदा वतन का !

अब चंद लम्हें भी, सदियों से हो चले हैं
छाने लगा है जूनून जीने का लम्हे लम्हे में !
.........................................

चलो अच्छा हुआ जो तुम, खिड़की से नीचे उतर आये
बिना दीदार कड़कती ठंड में, शायद हम ठिठुर जाते !
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कहाँ उलझे रहें हम, मिलने बिछड़ने के फसानों में
चलो दो-चार पग मिलकर रखें, हम नए तरानों में !

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एक तेरे ही नाम से, वतन में शान है मेरी
क्या उसको मिटा कर मुझे गुमनाम होना है !
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'उदय' अब तू ही बता दे रास्ता इंसान को
खा रहे रोटी वतन की, कर रहे सौदा वतन का !

21 comments:

संजय भास्‍कर said...

आदरणीय उदय जी
नमस्कार !
'उदय' अब तू ही बता दे रास्ता इंसान को
खा रहे रोटी वतन की, कर रहे सौदा वतन का !
......बहुत खूब कह डाला इन चंद पंक्तियों में

संजय भास्‍कर said...

शब्द नहीं हैं इनकी तारीफ के लिए मेरे पास...... काबिलेतारीफ बेहतरीन

मनोज कुमार said...

संदेश देती प्रेरक पंक्तियां। हिन्दी साहित्य की विधाएं - संस्मरण और यात्रा-वृत्तांत

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

वाह उदय भाई
बहुत सुंदर पंक्तियाँ
आभार

Arvind Jangid said...

अत्यंत सुन्दर पंक्तिया लिखीं हैं, बेहतरीन!

मुझे मित्र के रूप में स्वीकार करें

अरविन्द जांगीड,
कनिष्ठ लिपिक,
ज न वि,
मि. ऑफ एच आर डी

आपका साधुवाद.

कडुवासच said...

@ अरविन्द जांगिड
... aap mitr ban gaye hain ... svaagatam !!!

Anonymous said...

sirf ye post nahin....aap ka poora blog saandaar hai

शिवा said...

आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ,अच्छी रचना , बधाई ......

समयचक्र said...

अब चंद लम्हें भी, सदियों से हो चले हैं
छाने लगा है जूनून जीने का लम्हे लम्हे में ...

वाह छाने लगा है जीने का जूनून लम्हे लम्हे .... बहुत सुन्दर शेर हैं सर ...आभार

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत बढ़िया शेर हैं ...एक से बढ़ कर एक ..

निर्मला कपिला said...

कहाँ उलझे रहें हम, मिलने बिछड़ने के फसानों में
चलो दो-चार पग मिलकर रखें, हम नए तरानों में !
.........................................

एक तेरे ही नाम से, वतन में शान है मेरी
क्या उसको मिटा कर मुझे गुमनाम होना है !
.........................................

'उदय' अब तू ही बता दे रास्ता इंसान को
खा रहे रोटी वतन की, कर रहे सौदा वतन का !
वाह वाह ये तीनो शेर बहुत अच्छे लगे। बधाई आपको।

arvind said...

'उदय' अब तू ही बता दे रास्ता इंसान को
खा रहे रोटी वतन की, कर रहे सौदा वतन का ! ...itna badhiya ki nihshabd kar diya aapne.....

Deepak Saini said...

वाह उदय भाई
बहुत सुंदर पंक्तियाँ
आभार

vandana gupta said...

उदय' अब तू ही बता दे रास्ता इंसान को
खा रहे रोटी वतन की, कर रहे सौदा वतन का !
बेह्तरीन प्रस्तुति…………हर शेर शानदार्।

रचना दीक्षित said...

कहाँ उलझे रहें हम, मिलने बिछड़ने के फसानों में
चलो दो-चार पग मिलकर रखें, हम नए तरानों में !
एक से बढ़ कर एक बढ़िया शेर...

Randhir Singh Suman said...

nice

ZEAL said...

.

jabardast , dhaansoo rachna !

badhaii!

.

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

क्या बात है उदय भाई ... शानदार...एक से बढ़ कर एक बढ़िया शेर...

राज भाटिय़ा said...

उदय जी बहुत सुंदर रचना. धन्यवाद

ASHOK BAJAJ said...

'उदय' अब तू ही बता दे रास्ता इंसान को
खा रहे रोटी वतन की, कर रहे सौदा वतन का !
. बहुत खूब !!!

S.M.Masoom said...

खा रहे रोटी वतन की, कर रहे सौदा वतन का !

sach baat kahi ha..aise ghadaar bahut hain.