Saturday, October 23, 2010

लिव-इन रिलेशनशिप : एक सामाजिक द्रष्ट्रीकोण

'लिव-इन रिलेशनशिप' से तात्पर्य एक ऐसे रिश्ते से है जिसमें मर्द-औरत सामाजिक तौर पर शादी किये बगैर साथ-साथ रहते हैं और उनके बीच के संबंध निर्विवाद रूप से पति-पत्नी जैसे ही होते हैं, इस रिश्ते की खासियत यह होती है कि स्त्री-पुरुष दोनों ही एक-दूसरे के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित होते हैं फर्क सिर्फ इतना होता है कि उनकी सामाजिक रीति रिवाज के अनुरूप शादी नहीं हुई होती है यह स्थिति समय के बदलाव के साथ-साथ आधुनिक संस्कृति का एक हिस्सा बन गई है कहने का तात्पर्य यह है कि आज के बदलते परिवेश में युवक-युवतियां इतने आधुनिक हो गए हैं कि वे आपसी ताल-मेल पर मित्रवत एक साथ पति-पत्नी के रूप में साथ साथ रहना गौरव की बात समझते हैं इसे हम गौरव समझते हुए जरुरत भी कह सकते हैं, जरुरत इसलिए कि आधुनिक समय में एक दूसरे को समझने तथा काम-धंधे में सेटल होने के लिए समय की आवश्यकता को देखते हुए वे दोनों एक दूसरे के साथ रहने जीने के लिए स्वैच्छिक रूप से तैयार हो जाते हैं और जीवन यापन शुरू कर देते हैं समय के बदलाव के साथ-साथ साल, दो साल या चार साल के बाद यदि उन्हें महसूस होता है कि आगे भी साथ साथ रहा जा सकता है तो वे विधिवत शादी कर लेते हैं या फिर स्वैच्छिक रूप से ब्रेक-अप कर अलग अलग हो जाते हैं

'लिव-इन रिलेशनशिप' एक तरह का मित्रवत संबंध है जिसे विवाह के दायरे में कतई नहीं रखा जा सकता क्योंकि विवाह एक सामाजिक पारिवारिक बंधन अर्थात रिवाज है जिसकी एक आचार संहिता है, मान मर्यादा है, कानूनी प्रावधान हैं, ठीक इसी क्रम में विगत दिनों सुप्रीम कोर्ट ने भी एक फैसले में लिव-इन रिलेशनशिप को विवाह के दायरे में रखते हुए घरेलु हिंसा संबंधी कानूनी दायरे से बाहर माना है सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला निश्चिततौर पर स्वागत योग्य है क्योंकि इस फैसले से लिव-इन रिलेशनशिप के बढ़ते चलन में कुछ मात्रा में कमी अवश्य आनी चाहिएयदि इस रिश्ते को कानूनी या सामाजिक सपोर्ट मिलता है तो निश्चिततौर पर यह एक सामाजिक क्रान्ति का रूप ले लेगा जो सामाजिक मान-मर्यादा पारिवारिक द्रष्ट्रीकोण से अहितकर साबित होगा किन्तु हम एक सामाजिक द्रष्ट्रीकोण से देखें तो इस 'लिव-इन रिलेशनशिप' रूपी अनैतिक असामाजिक रिश्ते को स्वछंद छोड़ देना भी अहितकर ही साबित होगा, क्योंकि इस रिश्ते से तरह तरह की आपराधिक घटनाओं को जन्म लेने का खुला अवसर मिलेगा, इसलिए मेरा मानना है की इस अनैतिक रिश्ते को कानूनी अमली-जामा पहनाते हुए कानूनी बंधन में बांधा जाना सामाजिक, पारिवारिक मानवीय द्रष्ट्रीकोण से हितकर होगा

हालांकि लिव-इन रिलेशनशिप रूपी रिश्ते का जन्म आधुनिक संस्कृति रूपी कोख से हुआ है अत: इसे स्वछंद छोड़ देना समाज के हित में कतई नहीं होगा, ये माना की इस रिश्ते के परिणाम स्वरूप दहेज़ प्रताड़ना, दहेज़ ह्त्या अन्य घरेलु हिंसा जैसे अपराध घटित नहीं होंगे किन्तु सामूहिक बलात्कार, ग्रुप सेक्स, शारीरिक शोषण, ब्लेक मेलिंग, ह्त्या, ब्लू फिल्म मेकिंग जैसे अपराधों को निसंदेह प्रश्रय मिलेगा, जो समाज को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से कलंकित ही करेंगेयहाँ पर मेरा मानना तो यह है की इस रिश्ते को हम जितना नजर अंदाज करेंगे या स्वछंदता प्रदान करेंगे वह उतना की 'बेसरम' पेड़ की तरह स्वमेव फलता-फूलता रहेगा और समाज रूपी 'बगिया' को प्रदूषित करता रहेगायदि हम एक साफ़-सुथरे समाज की आशा रखते हैं तो हमें निसंदेह स्वत: आगे बढ़कर इस अनैतिक रिश्ते पर गंभीर मंथन कर इसे कानूनी बंधन में बांधना आवश्यक होगा जो सिर्फ कानूनी रूप से वरन सामाजिक द्रष्ट्रीकोण से भी हितकर होगा

16 comments:

Neeraj Rohilla said...

लिव इन रिलेशन पर पहला लेख पढा जो इसके मर्म तक पंहुचा । इस विश्लेष्ण के लिये बहुत धन्यवाद..

प्रवीण पाण्डेय said...

लिव इन व परिणामों के बारे में कभी सोचा ही नहीं, प्रकाश अवलोकित करने का आभार।

Taarkeshwar Giri said...

भारतीय समाज पर एक धब्बा हैं ये . अगर भारत में परिवार नाम कि संस्था को बचा के रखना हैं तो इसे जड़ से मिटाना होगा.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

आपकी चिंता जायज है..

ZEAL said...

सहमत हूँ ।

राज भाटिय़ा said...

सहमत हे जी आप से

लोकेन्द्र सिंह said...

श्याम जी, लिव-इन-रिलेशनशिप बहुत ही हानिकारक है इस देश के लिए। हां यह उन लोगों के लिए जरूर आवश्यक और अच्छा है जिनके लिए शारीरिक सुख सबसे बढ़कर है। दुनिया जिन परंपराओं से बिगड़ी है उन परंपराओं को अब हम अपना रहे हैं। क्योंकि कुछ लोगों को इस देश की पवित्र और संयमित बेहतर मानव जीवन से चिढ़ है। मुझे यह समझ में नहीं आता कैसे होते होंगे वे माता-पिता जो बिन विवाह अपनी बेटी को किसी के साथ सोने की इजाजत दे देते हैं। दरअसल कुछ युवा तो अपने माता-पिता की आंखों में धूल झौंकते हैं। माता-पिता बेखबर, बच्चे मजे में।
लिव-इन-रिलेशनशिप का सामाजिक बहिष्कार होना चाहिए।

गौरव शर्मा "भारतीय" said...

वन्दे मातरम
आपने बेहद प्रासंगिक और महत्वपूर्ण विषय पर सारगर्भित एवं सार्थक पोस्ट प्रकाशित किया है इसे पढ़कर यही लगता है कि विचार हमारे हैं और शब्द आपके ........
मै आपसे शत प्रतिशत सहमत होते हुए आपको सादर धन्यवाद और बधाई प्रेषित करता हूँ !!

महेन्‍द्र वर्मा said...

सामयिक विषय पर प्रभावशाली लेखन।

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

भारतीय समाज पश्चिम का अंधानुकरण कर रहा है जिसके बहुत ही घातक परिणाम निकलने वाले हैं।

Udan Tashtari said...

अच्छा विश्लेषण है,,,

दिगम्बर नासवा said...

अच्छा विश्लेषण ....

Dhirendra Giri said...

kewal or kewal sarthak baate kahi hai...bahut achha vushleshan hai ..mgr log isse samjhe tab to samjik fayda hai

satyendra said...

यदि हम एक साफ़-सुथरे समाज की आशा रखते हैं तो हमें निसंदेह स्वत: आगे बढ़कर इस अनैतिक रिश्ते पर गंभीर मंथन कर इसे कानूनी बंधन में बांधना आवश्यक होगा जो न सिर्फ कानूनी रूप से वरन सामाजिक द्रष्ट्रीकोण से भी हितकर होगा.
bahut khoob.

shyam said...

Thank u.Bahut hi achcha. Pariwar byawastha me purush aur nari ka milan pati aur patni ke roop me bin sadi ke kishee bhee roop me swikar nahi hona chahiye.....Manushya ek samajik prani hai aur ushe samaj ke niyam ka palan karana hoga."live in relationship"Kabhi bhi swikar nahi hai. Fir to Call girls, prostitutes ye sab sabda bemani ho jayenge.

डॉ.मीनाक्षी स्वामी Meenakshi Swami said...

सामयिक विषय पर सारगर्भित विचार।
आपसे पूरी तरह सहमत हूं।
सामाजिक संस्थाएं लम्बी प्रक्रिया से गुजरकर स्थापित होती हैं। पीढियों के अनुभव उसमें जुडे होते हैं।
तथाकथित प्रगतिशीलता के नाम पर इस तरह के रिश्ते व्यक्ति और समाज दोनों के लिये घातक हैं।