Friday, October 15, 2010

ख़्वाब ...

मंजिलें आँखों में हों
दिलों में हों
या ख़्वाबों में हों
एक एक पल
एक एक कदम
हमें उनकी ओर
बढ़ते रहना चाहिए !

होंगे साकार ख़्वाब
मिलेंगी मंजिलें
कदम दर कदम
राहों पर
हमें चलते रहना
उनकी ओर
बढ़ते रहना चाहिए !

मुश्किलें होंगी आसां
बढ़ेंगे कदम
मिलेंगी मंजिलें
हर कदम पर
नए जज्बे के संग
हमें उनकी ओर
बढ़ते रहना चाहिए !

18 comments:

सुधीर राघव said...

बहुत ही सुंदर कविता।

संजय भास्‍कर said...

मुश्किलें होंगी आसां
बढ़ेंगे कदम
मिलेंगी मंजिलें
हर कदम पर
नए जज्बे के संग
हमें उनकी ओर
बढ़ते रहना चाहिए !

गजब कि पंक्तियाँ हैं ...

बहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...

संजय भास्‍कर said...

......... प्रशंसनीय रचना - बधाई

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत सुन्दर रचना।

Apanatva said...

sunder sandesh detee acchee rachana......

उस्ताद जी said...

4/10


सुन्दर प्रयास - प्रेरक रचना

मनोज कुमार said...

यह रचना हमें नवचेतना प्रदान करती है और नकारात्मक सोच से दूर सकारात्मक सोच के क़रीब ले जाती है।

कडुवासच said...

@ उस्ताद जी
... ये जो नंबर बांटते घूम रहे हो, संभाल कर रखो गुमनामी में काम आयेंगे ... वैसे भी बहरूपिये लोगों को उस्तादी शोभा नहीं देती है !!!

राज भाटिय़ा said...

अति सुंदर रचना धन्यवाद

उस्ताद जी said...

मानो किसी ने दुम पर पेट्रोल का छिडकाव कर दिया हो....एक महाकवि का यूँ उछालना शोभा नहीं देता.
बहुरुपिया बना ही इसलिए हूँ ताकि मुक्त भाव से पोस्ट को पढ़कर मूल्यांकन कर सकूँ. बहुरूपिया न बनकर मैं भी अगर एक ब्लॉग बना लूँ तो क्या होगा ? ऐसी ही टिप्पणियां मेरी पोस्ट पर भी आएँगी और कोई आलोचना करेगा तो आपकी तरह मैं भी उछलूंगा :)
साहित्य-कला-संगीत की दुनिया में कदम रखना है तो आलोचना सहने की शक्ति रखिये.
आखिरी बात -
नाराजगी और गाली-गलौज किसलिए ?
आपको मूल्यांकन पसंद नहीं आया आप डिलीट कर दीजिये ...बात ख़त्म.
साहित्यकार तो आप जब बनेंगे तब बनेंगे पहले सभ्य इंसान तो बन जाईये.

कडुवासच said...

@ उस्ताद जी
... सभ्यता का पाठ पढाना बहरुपियों को शोभा नहीं देता !
... अभी तो सिर्फ़ नाराजगी जाहिर की है, अभी आपने गाली-गलौच की स्थिति पैदा नहीं की है !
... ये दुप पर पेट्रोल की कहावत आप पर लागू होती है तभी तो तिलमिला रहे हो, अपुन तो शुरु से ही "बारूद के ढेर" पर बैठकर लिखने का आदि है !
... आपके मूल्यांकन से डरता नहीं हूं पर किसी बहरुपिये को अधिकार भी नहीं देता कि वह बे-वजह टीका-टिप्पणी करे !
... टिप्पणी डिलिट कर देता तो आप कहते कि आलोचना सहने की हिम्मत नहीं है !
... बेहतर ये होगा कि असल रूप में आकर समालोचना-आलोचना करो तो आपका स्वागत होगा ...!
... अगर दम है तो असल रूप में ब्लागजगत में आ जाओ, नहीं तो बुरके में छिपे रहो ... !!!

उस्ताद जी said...

अभी लौंडे हैं आप
यह त्रिया चरित्तर हमारे आगे न दिखाए
कल हमारे ब्लॉग पर क्या श्लोक पढ़कर आये थे ?
वो कमेन्ट डिलीट ही इसीलिए किया क्योंकि अभद्र भाषा लिखी थी.
और ये जो कमेन्ट में फटी..फटी का जिक्र किया था न तो समझ लीजिये .. अगर फटी न होती तो आप इस दुनिया में आ ही न पाते.
रही बात बारूद पर बैठ कर लिखने की तो बारूद की बनाईये महीन बत्ती और .......बाकी आप महाकवि हैं समझदार हैं ही.

कडुवासच said...

@ उस्ताद जी
... लौंडाई पर चर्चा-परिचर्चा करेंगे कभी, अब आप जैसे लौंडे मिल ही गये हैं !
... त्रिया चरित्र तो बहरुपियेपन में स्वमेव झलक रहा है !
... "फ़टी" शब्द में कोई अश्लीलता नहीं है ... चलो ये जानकर अच्छा लगा कि आप फ़टने की क्रिया के उपरांत दुनिया में आये हैं !
... बारुदरूपी टिप्पणियां आपके पास भेज चुका हूं ... उसी का नतीजा है जो इअतनी फ़ट पडी है ... बाकी आप बहरुपिये हैं खुद समझदार हैं !
... अपुन आपके फ़टी शब्द युक्त कमेंट को डिलिट नहीं कर रहा हूं !

Abhinav Sathi said...

shaanti---shaanti--shaanti
please aap log jhagda na karen
UDAI JI aap anavashyak uttejit ho rahe hain. kisi ke moolyankan se kya fark padta hai. isko bhi aap comment hi kyon nahin maan lete ?
maine ustad ji ka moolyankan 4-5 jagah aur bhi dekha hai. mujhe sahi hi laga. galti bhi hai to unka apna najaria hai.
vyarth jhagda na karen

कडुवासच said...

@ Abhinav Sathi
... आप एक बहरुपिये के समर्थन में आ गये हैं पर ब्लागजगत में कहीं आपका भी अस्तित्व दिखाई नहीं दे रहा है ... कहीं आप उस्तादरूपी बहरुपिये के शिष्य तो नहीं हैं ??

Abhinav Sathi said...

ajeeb insaan ho yaar tum.
arey mujhe kya
lado lado laathi le lo
nonsense

कडुवासच said...

@ Abhinav Sathi
... इसमे लडाई वाली कोई बात नहीं है ... आप जैसे लोग बे-वजह ब्लागजगत में बहरुपियों के समर्थन में खडे होकर उनको बढावा देने लगते हो ... nonsense ... !!!
... इसमें अजीब इन्सान वाली भी कोई बात नहीं है ... न तो आपका कोई अस्तित्व ब्लागजगत में दिखाई दे रहा है और न ही कोई पहचान ... !!!

PD said...

हा हा हा.. अच्छा तमाशा चल रहा है.. :)