Thursday, September 16, 2010

नक्सलवाद,स्वामी अग्निवेश,छत्तीसगढ़ मीडिया ... विवाद क्यों ?

क्या सचमुच छत्तीसगढ़ मीडिया बिका हुआ है ? ... यह प्रश्न उठाना लाजिमी है, उठे भी क्यों जब बड़े बड़े लोग टीका-टिप्पणी पर उतर आये हों ... टीका-टिप्पणी भी किसी सार्थक मुद्दे पर होकर स्वार्थगत अस्तित्व के प्रदर्शन को लेकर हो ... जहां व्यवहार में स्वार्थगत भावना (स्वार्थगत भावना से तात्पर्य नक्सलियों के अप्रत्यक्ष समर्थन से है) परिलक्षित हो रही हो वहां किसी समूह पर खासतौर पर "छत्तीसगढ़ मीडिया " पर ओछी टिप्पणी जाहिर कर देना कितना न्यायसंगत है !!

टीका-टिप्पणी का दौर जब शुरू हो ही गया है तो यह उल्लेख करना भी आवश्यक है कि किस मुद्दे पर टकराहट की स्थिति निर्मित हुई है ... हुआ दर-असल यह है कि "नक्सलवाद" की समस्या से सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ जूझ रहा है और स्वामी अग्निवेश एक ऐसा व्यक्तित्व जो नक्सलवाद को शान्ति वार्ता के माध्यम से सुलझाने के पक्षधर हैं जो विगत दिनों शान्ति यात्रा पर छत्तीसगढ़ भ्रमण पर थे ... भ्रमण के दौरान उन्हें "छत्तीसगढ़ मीडिया " से असहजता महसूस हुई तथा नक्सली मुद्दे पर विरोध के स्वर भी सुनने पड़े ...

... इसी सन्दर्भ में स्वामी अग्निवेश ने राष्ट्रीय साहित्यिक पत्रिका हंस में प्रकाशित लेख में अपना आक्रोश झुंझलाहट में प्रगट करते हुए छत्तीसगढ़ मीडिया को "उद्धोगपतियों के दलाल तथा मुख्यमंत्री के समजाए हुए" हैं की संज्ञा देते हुए बिका हुआ घोषित कर दिया ... धन्य हैं स्वामी जी, जो झुंझलाहट में आपा ही खो बैठे ... अब प्रश्न यह उठता है कि जो व्यक्तित्व नक्सली उन्मूलन की दिशा में शान्ति वार्ता का पक्षधर हो, इस तरह ऊल-जलूल प्रतिक्रया जाहिर कर रहा हो, क्या वह शान्ति वार्ता के लिए उपयुक्त हो सकता है ?

इस टीका-टिप्पणी विवाद की जड़ है नक्सली समस्या, इसलिए मूल मुद्दे पर चर्चा भी लाजिमी है इस मुद्दे पर मेरा मानना तो यह है कि देश में व्याप्त नक्सली समस्या किसी गाँव विशेष में चल रही छोटी-मोटी समस्या नहीं है जो बैठकर शान्ति वार्ता से सहजता से सुलझ जाए ... साथ ही साथ यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा कि नक्सलवाद का अंदरूनी रूप से व्यवसायीकरण हो गया है !! ... यह मुद्दा शान्ति वार्ता से सुलझने के दायरे से काफी आगे निकल गया जान पड़ता है इसके समाधान के लिए ठोस कारगर नीति - रणनीति ही सार्थक सफल सिद्ध हो सकती है !

6 comments:

arvind said...

समाधान के लिए ठोस व कारगर नीति - रणनीति ही सार्थक व सफल सिद्ध हो सकती है ! ...lakh take ki baat...badhiya post.

Arun sathi said...

agniwesh ne galat nahi kaha.

36solutions said...

श्‍याम भाई पिछले पोस्‍टों से आपकी गद्य लेखन क्षमता को देखकर आनंदित हो रहा हूं, आप इस विधा में भी बेहतर लिख रहे हैं, धन्‍यवाद.

कडुवासच said...

@अरूण साथी
... किसी भी पक्ष के समर्थन अथवा विरोध में "दो शब्द" में अभिव्यक्ति दे कर समर्थन अथवा विरोध प्रगट करना "आंख मूंद कर" अभिमत दर्ज करने जैसा है ... बेहतर ये होगा कि आप तर्कपूर्ण अभिव्यक्ति दर्ज करें, धन्यवाद !!!

कडुवासच said...

@ संजीव तिवारी .. Sanjeeva Tiwari
... बस कोशिश कर रहा हूं, शुक्रिया संजीव भाई !!!

हेमन्‍त वैष्‍णव said...

******* नाति बबा के गोठ *******

नाति :- बबा जी तोर उमर कतका हे ग
बबा :- उनसठ साल बे ...... काबर रे
नाति :- एक साल बांचे हे
बबा :- का हा रे
नाति :- साठ बुदधि के नास के सुने रेहेव ग
तेकरे सेती पुछतव
बबा :- सियान मनखे के अईसन मजाक करे बे
अरे बानी एैसी बोलिए मन का आपा खोय
औरन को शीतल करय आपौ शीतल होय
नाति :- बने जमाय हस बबा....तीर ले छूटे
कमान अउ मुंह ले निकले जबान
एक बेर निकले दुबारा नई आय ग
बबा :- तेकरे सेती कथो रे बाबू ए जिनगी पानी
के फोटका ए रे
कब फुट जाही भरोसा नई ए
नाति :- बबा अभी इही बात ह गाना म बने
चलत हे ......
चोला माटी के हे राम एकर का भरोसा
चोला माटी के हे रे......