Friday, August 20, 2010

खुदा का रास्ता बेहद जुदा है !

..........................................................

मैं मानता हूं, खुदा सचमुच मेरा खुदा है
पर उसके रास्ते पर चल पाना बेहद जुदा है

..........................................................

7 comments:

36solutions said...

बेहतरीन

Anonymous said...

सुन्दर पोस्ट, छत्तीसगढ मीडिया क्लब में आपका स्वागत है.

दिगम्बर नासवा said...

बहुत खूब .. क्या बात कह दी ...

राज भाटिय़ा said...

मुसल है जिस का ईमान वोही चल सकता है खुदा के बताये रास्ते पर, जरुरी नही वो मुसल मान ही हो.... क्योकि मुसल मान बनने से किसी का ईमान मुसल नही हो जाता, आप के इस छोटे से शेर ने बहुत गहरी बात कह दी.
धन्यवाद

Majaal said...

निदा साहब का एक कलाम याद आ रहा है :
घर से मस्जिद है बहुत दूर, चलो यूँ कर लें,
किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाए.

डॉ टी एस दराल said...

वाह , क्या बात है ।
बहुत खूब ।

Anonymous said...

बहुत बढिया!