Sunday, August 29, 2010

हतप्रभ

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जब से देखा है आईना, चहरे से सुकूं गायब है
शायद आज वह खुद पे हतप्रभ हुआ है

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6 comments:

Urmi said...

बहुत सुन्दर लिखा है आपने! बहुत बढ़िया लगा!

Majaal said...

बेहतर की वक्त पर शिनाख्त हो गयी 'मजाल',
कईयों की वरना मुगालते जिंदगी भर नहीं जाती

Majaal said...

बेहतर की वक्त पर शिनाख्त हो गयी 'मजाल',
कईयों की वरना मुगालते जिंदगी भर नहीं जाती

कडुवासच said...

@Majaal
... क्या बात है मजाल मियां, बधाई !!!

Shah Nawaz said...

बहुत खूब।

दिगम्बर नासवा said...

अपना असली चहरा देख लिया होगा ... लाजवाब शेर है ...