"चलो अच्छा हुआ, जो तुम मेरे दर पे नहीं आए / तुम झुकते नहीं, और मैं चौखटें ऊंची कर नही पाता !"
Thursday, July 22, 2010
"रचना जी" व "फ़िरदौस जी" आप सादर आमंत्रित हैं !
विगत दिनों मैंने एक पोस्ट लगाई थी ... खुबसूरती को अश्लीलता की निगाह से क्यों देखते हैं हम !!... इस पोस्ट पर लगे फ़ोटोग्राफ़्स को देखकर "रचना जी" व "फ़िरदौस जी" ने तीखी टिप्पणी दर्ज की थी ... बाद में मैंने समर्थन व विरोध में दर्ज की गई सारी टिप्पणियों को डिलीट कर दिया था तथा फ़ोटोग्राफ़्स भी हटा दिये थे ... इस पोस्ट के बाद से कुछ बुद्धिजीवी वर्ग व महिला वर्ग के ब्लागर मेरे इस ब्लाग पर टिप्पणी दर्ज नहीं कर रहे हैं और संभव है वो पढने भी नहीं आ रहे होंगे ... उसके बाद से ही मैंने एक अलग बिलकुल साफ़-सुथरा ब्लाग ... "उदय की दुनिया" ... तैयार किया ताकि जो लोग इस ... कडुवा सच ... रूपी अखाडे पर अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं करा रहे हैं कम से कम वे लोग मेरे लेखन को नये ब्लाग पर पढ सकें ..... बुद्धिजीवी वर्ग व महिला वर्ग के ब्लागर ... खासतौर पर "रचना जी" व "फ़िरदौस जी" आप सादर आमंत्रित हैं ... मेरे नये ब्लाग ... उदय की दुनिया ... पर ... साथ ही साथ सभी ब्लागर साथियों आप सब का भी मैं स्वागत करता हूं ... धन्यवाद ... !
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4 comments:
shyam bhai jab aap kaduaa sach likh rahe hain to kisi ke teekhe tippani se naaraj nahi hona chaahiye. i hope ki rachnaji our firdousji jarur aapke blog par tippani darj karengi.
इस कडवी दुनिया में ज्यादा कड़वा सच बोलने की ज़रुरत कहाँ है भाई ।
विवादस्पद बातों से बचकर भी अच्छा लेखन किया जा सकता है ।
शुभकामनायें ।
DRAL JI NE BILKUL SAHI KAHA SHYAM JI
उदय जी,
सच कड़वा हो या मीठा जमाना उसे पचा शायद ही पाता है। और यह जो ब्लाग जगत है अजीब तरह के कायदे कानून से चलता है। टिप्पणी के नाम पर वाह, सुंदर, बहुत खूब, काबिले तारीफ जैसे जुमले चिपकाते जाएँ अन्य ब्लाग पर, चाहे मन ही मन हँस रहे हो या कुछ भी समझ नहीँ आ पाये, आपके समर्थकोँ की संख्या बढ़ती जाएगी और पोस्ट करने के कुछ ही घंटोँ मेँ अनगिनत टिप्पणियाँ चिपक जाएगी। लेकिन रचनाकार के दिल को सुकून कुछ ही टिप्पणी पहुचा पाती हैँ। अजीब सा दस्तूर है हमारे इस ब्लाग का और रस्म अदायगी का बेमानी चलन हावी हो गया है। अतः लिखते रहेँ और लेखक परवाह करे तो क्योँ करेँ और किसका करेँ। कड़वाहट अच्छी ना लगे तो कड़वा सच अवश्य लिख भेजेँ।
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