Friday, July 2, 2010

प्रार्थना

..... संभव है ईश्वर ने आपके लिये, आपके द्वारा प्रार्थना में चाहे गए "विशेष उद्देश्य" से हटकर "कुछ और ही लक्ष्य" निर्धारित कर रखा हो, ऎसी परिस्थिति में प्रार्थना में चाहे गए लक्ष्य तथा ईश्वर द्वारा आपके लिये निर्धारित लक्ष्य दोनों समय-बेसमय आपकी मन: स्थिति को असमंजस्य में डालने का प्रयत्न करेंगे .....

16 comments:

सूर्यकान्त गुप्ता said...

मन किसे स्वीकार करता है या कहें ईश्वर किस कार्य को करने के लिये अपनी मंजूरी देता है वही होता है। सब मन का खेल है, विचलित हुआ कि गया। अच्चा विचार! आचार्य जी को मेरा सादर वंदन्।

रश्मि प्रभा... said...

sahi kaha

राजकुमार सोनी said...

बहुत ही शानदार पोस्ट

राज भाटिय़ा said...

धन्यवाद

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

आचार्य उदय का तो जवाब नहीं

बहुत सुंदर उक्ति

girish pankaj said...

gaagar me sagar. chhote mey badee baat.

1st choice said...

अंकल आप क्या हो मैं समझ नहीं पा रहा हूं।

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अंकल आप क्या हो मैं समझ नहीं पा रहा हूं।

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अंकल आप क्या हो मैं समझ नहीं पा रहा हूं।

36solutions said...

आचार्य जी को नमन.

संजय भास्‍कर said...

behtreen...

संजय भास्‍कर said...

बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..