Thursday, June 3, 2010

"समीर लाल" व "ललित शर्मा" पुरुष ही नहीं हैं .... !!!

ब्लागजगत में मुझे कदम रखे हुये ज्यादा समय नहीं हुआ है ... अब धीरे धीरे पांव पसारने का मन करने लगता है ... मेरा तात्पर्य ये है कि जैसे लंबे सफ़र के बाद चलते चलते आदमी थक जाता है तब वह बैठते साथ ही पांव (पैर) पसारने का जोखिम नहीं उठाता है क्योंकि नस-बस चढने की संभावना रहती है ...

... तनिक सुस्ताने के बाद की वह पांव पसारना शुरु करता है ... भईये मेरा मतलब अब थोडा थोडा सुस्ताना शुरु कर रहा हूं तो पांव पसारने का मन करने लगता है ... पर अभी समय नहीं आया है पांव पसारने का ... वो इसलिये अभी में ब्लागिंग में बहुत पीछे चल रहा हूं ... महापुरुषों की भीड में कहीं दिख ही नहीं रहा हूं ... न जाने वो वक्त कब आयेगा जब मैं भी ब्लागजगत के महापुरुषों के साथ दिखाई दूंगा ...

... दो धुरंधर ब्लागरों की टिप्पणी से ऊर्जा प्रभाहित होती है ... आप खुद देख लो उनकी टिप्पणी जो उन्होंने पिछली पोस्ट पर दर्ज की है : -

Udan Tashtari
said...

बहुत खूब, महाराज!

ललित शर्मा said...

बहुत पी ली भैया
चलो अब घर चलो:)

बम बम बम बम डम डम डम डम

... अब हुआ ये कि इन टिप्पणियों को पढकर मैं सुबह सुबह आधे घंटे हंस हंस कर लोट-पोट हो गया .... मुझे तो लगता है "समीर लाल" व "ललित शर्मा" पुरुष ही नहीं हैं ... वरन ये दोनों "महापुरुष" हैं ... "महापुरुष" ... धन्य हैं आप दोनों ... धन्य है ब्लागजगत ... जय जोहार!!!

24 comments:

arvind said...

धन्य हैं आप .. धन्य है ब्लागजगत ... जय जोहार!!!

kshama said...

Dhany bhaag aapke!

girish pankaj said...

sachmuch...dono mahaapurush hai...

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

कोई शक?

संजय भास्‍कर said...

धन्य है ब्लागजगत ...

राजीव तनेजा said...

सही कहा आपने...ये दोनों हिंदी ब्लॉगजगत में मील का पत्थर हैं

M VERMA said...

कौन सी नई बात बता रहे हैं आप!!
समीर जी से अब तक मिला नहीं (पर ऐसा लगता नहीं है) पर ललित जी से मिल चुका हूँ. जिन्दादिल पुरूष है (अरे पुरूष नहीं महापुरूष है) समीर जी से जब मिलूँगा तो पूरा यकीन है यही बात उनके लिये भी कहूँगा.

माधव( Madhav) said...

exactly, both r harbinger in Blog world

vandana gupta said...

आपको पता तो चल गया।

पापा जी said...
This comment has been removed by a blog administrator.
पापा जी said...
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सूर्यकान्त गुप्ता said...

पूर्ण रूपेण दीक्षा लेकर शिष्य बनें इनके फिर देखिये आपकी मनोकामना कैसे पूरी नही होगी। गुरु गुड रह जायेंगे और चेलाजी शक्कर हो जायेंगे। ्………जय जोहार्…॥।

राजकुमार सोनी said...

देखो श्याम भाई
आपने जैसे ही महापुरूषों के बारे में लिखा... कुछ पुरूषों को यह बात बुरी लग गई। उन्होंने दो लोगों को केवल इसी काम में लगा दिया है कि पोस्ट ऊपर नहीं चढ़ने देनी है। लगाओ नापसन्द का चटका।
लेकिन आप तो नापसन्द के चटके परवाह मत करो..
ब्लागरों के कुत्तों ने भी बनाया संगठन को भी आज कुछ पुरूषों ने जबरदस्त ढंग से ..... किया है, अच्छा है कमीने साले कम से कम पढ तो रहे हैं।

दिनेशराय द्विवेदी said...

हमें तो आप उन दोनों से भी महान लगे।

आचार्य उदय said...

आईये जानें ..... मन ही मंदिर है !

आचार्य जी

कडुवासच said...

@पापा जी
... आप लोगों को समझा समझा के थक गया हूं कि मेरे ब्लाग पर आकर नौटंकी मत किया करो ... पर तुम हो कि मानते ही नहीं हो ... आपकी बे-फ़िजूल की दोनों अमर्यादित टिप्पणी डिलिट कर दिया हूं ... दोबारा यहां फ़टकने की कोशिश मत करना ... नहीं तो बांध कर रख लूंगा ...!!!!

कडुवासच said...

@दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi
...ये आपका बडप्पन है ... धन्यवाद !!!

Gyan Darpan said...

:) मजेदार लेख

संगीता पुरी said...

इस पोस्‍ट का शीर्षक गजब है !!

Udan Tashtari said...

पुरुष कैटेगरी से बाहर होने पर भी पहली बार कोई धन्य महसूस कर रहा होगा... हा हा!! :)

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

समीर भाइ सहमत-:):)

राज भाटिय़ा said...

हम भी आप के लेख से सहमत है जी

मनोज कुमार said...

ये सच है
पर
कड़वा
नहीं
मीठा है।

शरद कोकास said...

हाहाहाहाह......धन्य है आप भी ।