Sunday, May 30, 2010

ख्वाबों की बस्ती

नई राह, नये हौसले
नये जज्बे, नये कदम
चलो चलें हम
नई सुबह के साथ
उस ओर, जहां है
मेरे ख्वाबों की बस्ती
सच, आतुर हूं मैं
पहुंचने के लिये
अपनी नई मंजिल पर
ख्वाबों के साथ
ख्वाबों की बस्ती में !

16 comments:

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

बहुत बढिया श्याम भाई
चलें ख्वाबों की बस्ती में
चले अपनी ही मस्ती में

आभार

honesty project democracy said...

ख्वाब सुनहरें और सार्थक उसमे लोभ-लालच की अति न हो तो जरूर आतुर होना चाहिए और इसका स्वागत भी होना चाहिए ,लेकिन दुर्भाग्य से आज ज्यादातर लोगों का ख्वाब पैसा और सिर्फ पैसा है जो सारे दुखों का कारण है ,उम्दा प्रस्तुती ऐसे ही लिखिए !

Udan Tashtari said...

बहुत सुन्दर!१

आपकी डायरी के पन्ने तो कमाल के हैं.

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

वाकई में डाइरी के पन्ने कमाल के हैं....

Ra said...

बहुत सुन्दर !

kshama said...

Aameen! Aameen ! Aapko zaroor wah khushnuma manzil milegi!

drsatyajitsahu.blogspot.in said...

wah................KYVBON KI BASTI....

arvind said...

अपनी नई मंजिल पर
ख्बाबों के साथ
ख्बाबों की बस्ती में !...................बहुत बढिया श्याम भाई

Sanjeet Tripathi said...

एक सुधार अगर आप करना चाहें तो
यह "ख्वाबों" है मेरे ख्याल से, "ख्बाबों" नहीं।

बाकी है बढ़िया।
शुभकामनाएं

पापा जी said...

पुत्र
तू ये डायरी के पन्ने कब तक चिपकाते रहेगा
क्या तेरे पास ज्वलंत मुद्दे नही हैं देख संजीत त्रिपाठी कुछ सलाह दे रहा है मान ले वह सकल सूरत से समझदार ब्लागर लग रहा है
पापा जी

कडुवासच said...

@Sanjeet Tripathi
...त्रूटि में सुधार आवश्यक था, ध्यान आकर्षण के लिये ...आभार !!!

कडुवासच said...

@पापा जी
...कुछ ज्वलंत मुद्दे भी छोड जाते तो अच्छा होता !!!

राज भाटिय़ा said...

काश आप की ख्बाबों की बस्ती में सच मै इतनी ही सुंदर हो, बहुत अच्छी लगई आप की यह कविता

डॉ टी एस दराल said...

नई राह मुबारक हो ।
यदि धूम्रपान करते हों तो आज से ही छोड़ दें ।

दादा जी said...
This comment has been removed by the author.
दादा जी said...

पुत्र उदय
हमारा बेटा पापा जी बनकर घुम रहा है।
जब से घर से भागा है तब से इसकी अम्मा
बहुत परेशान है।
अगर कहीं मिले तो इसे पकड़ कर मेरे पास लाना
बहुत नालायक हो गया है।
दादा के सामने पापा जी बन रहा है।