Thursday, May 27, 2010

ख़्वाब

कुछ ख़्वाब थे मुट्ठी में
रेत के कणों की तरह
शनै: शनै: कब बिखरे
सफ़र में एहसास हुआ
बस, कुछ बचा है
तो एक ख़्वाब जहन में
क्या जहन में बसा ख़्वाब
ले जायेगा मंजिल तक
अब वो पल हैं सामने
जो मुझे झकझोर रहे हैं
कह रहे हैं रख हौसला
चलता चल, बढता चल
एक नई मंजिल की ओर
जहन में बसा ख़्वाब
भी तो आखिर ख़्वाब है !

8 comments:

संजय भास्‍कर said...

सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।

संजय भास्‍कर said...

कह रहे हैं रख हौसला
चलता चल, बढता चल
एक नई मंजिल की ओर

age badhane par hi nai manjil melegi....

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर लिखा है बधाई।

राजकुमार सोनी said...

उदय भाई
टेंशन लेने का नहीं टेंशन देने का। निराशा अच्छी बात नहीं है। मैं हूं ना...

Randhir Singh Suman said...

nice

36solutions said...

ख्‍वाब और हकीकत का द्वंद. धन्‍यवाद.

पवन धीमान said...

nice one.

मुकेश "जैफ" said...

ख्वाबोँ की हकीकत से रुबरु कराने के लिये धन्यवाद