Thursday, April 8, 2010

.... पुरुष देख के खुश, तो महिला दिखा के खुश !!!

क्या औरत वही दिखा रही है जो पुरुष देखना चाहता है ... या फिर वह जानती है कि कैसे पुरुषों को अपनी ओर आकर्षित किया जाये .....क्यों ऎसे छोटे-छोटे ब्लाउज पहनना जिसमें से अधखुले-झलकते स्तनों की नुमाईस हो .... क्यों पूर्णरुपेण खुली हुई पीठ झलकॆ ... क्यों ऎसी मिनी स्कर्ट पहनना जिससे टांगें झलकें ... क्यों इतने भीने-भीने कपडे पहनना जो लगभग पारदर्सी हों .... कहीं ऎसा तो नहीं ... पुरुष देख के खुश, तो महिला दिखा के खुश !!!

... इस भागम-भाग दौर में भला एक औरत दूसरी औरत से पीछे क्यों रहे .... उसे पीछे रहने की जरुरत भी क्या है ... अगर पीछे रह जायेगी तो "बहन जी" ..... बैकवर्ड ... या देहाती .... जैसे कांटों की तरह चुभने वाले "कमेंट" सुन सुन कर पानी पानी हो जायेगी ..... आज की कुछेक औरतें तो इतनी समझदार, चालाक व बुद्धिमान हो गई हैं कि वह जानती हैं .... पुरुषों को कैसे आकर्षित किया जाए ..... या फ़िर कैसे खुद को आकर्षण का केन्द्र बनाया जाये .... लेकिन जिस्म की इस तरह खुल्लम-खुल्ला नुमाईस .... कहीं ऎसा तो नहीं ... पुरुष देख के खुश, तो महिला दिखा के खुश ...

... औरत के पहने टाईट जींस-टी शर्ट से झलकते जिस्म, मिनी स्कर्ट में छलकती जांघें, अधखुले स्तनों, खुली पीठ व मादक अदाओं को देख कर ... पुरुष सडक पर, बाजार में, समारोहों में, कार्यालयों में तथा आस-पडोस में आहें भरने से भला क्यों न बाज आये .... और तो और कुछ लोगों का तो दिन का चैन व रातों की नींद तक गायब हो जाती है ..... ये बिलकुल आम बात होते जा रही है कि वर्तमान समय में कुछेक महिलायें जान-बूझ कर ही ऎसे कपडे पहनने लगीं हैं कि उनके जिस्म की नुमाईस स्वमेव हो ... आखिर क्यों, किसलिये, ... ऎसे उटपटांग ... भडकीले ... कामोत्तेजक कपडे पहनने की जरुरत ही क्या है ... कहीं ऎसा तो नहीं ... पुरुष देख के खुश, तो महिला दिखा के खुश !!

25 comments:

Randhir Singh Suman said...

nice

संजय भास्‍कर said...

aaj ke smaaj ki sachai bya kar di aapne shyam ji
aaj ka smaaj aisa hi hai....

उम्मतें said...

श्याम भाई
कृपया इस आलेख पर पुनर्विचार कीजिये ! मुझे लगता है कि इतनी बड़ी आबादी के बारे में सरलीकृत निष्कर्ष उचित नहीं है ,शेष आप जो ठीक समझें !

arvind said...

achha lekh,vyangya.vaise aapki baaten vivadit lagati hai.

निर्झर'नीर said...

जिसमें तेरी खुशी उसमें ही मेरी खुशी .... पुरुष देख के खुश, तो महिला दिखा के खुश ......

.... ये सच में "कडुवा सच" है kam-o-besh haal yahi hai

aapne kah diya bas baki man m rakhte h

कडुवासच said...

अरविन्द जी
..... लेख में विवादास्पद तो कुछ नहीं है जो लोगों का वर्त्तमान नजरिया है वही अभिव्यक्त किया गया !!!

Saleem Khan said...

पहले संक्षेप में यह देखते चले कि नारी दुर्गति, नारी-अपमान, नारी-शोषण के समाधान अब तक किये जा रहे हैं वे क्या हैं? मौजूदा भौतिकवादी, विलास्वादी, सेकुलर (धर्म-उदासीन व ईश्वर विमुख) जीवन-व्यवस्था ने उन्हें सफल होने दिया है या असफल. क्या वास्तव में इस तहज़ीब के मूल-तत्वों में इतना दम, सामर्थ्य व सक्षमता है कि चमकते उजालों और रंग-बिरंगी तेज़ रोशनियों की बारीक परतों में लिपटे गहरे, भयावह, व्यापक और जालिम अंधेरों से नारी जाति को मुक्त करा सकें???

Saleem Khan said...

अविवाहित रूप से नारी-पुरुष के बीच पति-पत्नी का सम्बन्ध (Live-in-Relation) पाश्चात्य सभ्यता का ताज़ा तोह्फ़ा. स्त्री का सम्मानपूर्ण 'अपमान'.
स्त्री के नैतिक अस्तित्व के इस विघटन में न क़ानून को कुछ लेना देना, न ही नारी जाति के शुभ चिंतकों का कुछ लेना देना, न पूर्वी सभ्यता के गुण-गायकों का कुछ लेना देना, और न ही नारी स्वतंत्रता आन्दोलन के लोगों का कुछ लेना देना.
सहमती यौन-क्रिया (Fornication) की अनैतिकता को मानव-अधिकार (Human Right) नामक 'नैतिकता का मक़ाम हासिल.

Saleem Khan said...

समाचार पत्रों, पत्रिकाओं में रोज़ाना औरतों के नंगे, अध्-नंगे, बल्कि पूरे नंगे जिस्म का अपमानजनक प्रकाशन.
सौन्दर्य-प्रतियोगिता... अब तो विशेष अंग प्रतियोगिता भी... तथा फैशन शो/ रैंप शो के कैट-वाक् में अश्लीलता का प्रदर्शन और टीवी चैनल द्वारा ग्लोबली प्रसारण
कारपोरेट बिज़नेस और सामान्य व्यापारियों/उत्पादकों द्वारा संचालित विज्ञापन प्रणाली में औरत का बिकाऊ नारीत्व.
सिनेमा टीवी के परदों पर करोडों-अरबों लोगों को औरत की अभद्र मुद्राओं में परोसे जाने वाले चल-चित्र, दिन-प्रतिदिन और रात-दिन.
इन्टरनेट पर पॉर्नसाइट्स. लाखों वेब-पृष्ठों पे औरत के 'इस्तेमाल' के घिनावने और बेहूदा चित्र

Urmi said...

आपने सच्चाई को बखूबी शब्दों में पिरोया है! बहुत ही बढ़िया लिखा है आपने! उम्दा प्रस्तुती!

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

बहुत सुंदर और विचारनीय आलेख.....

Anonymous said...

prography at its best

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

नमस्कार,
जब एक महिला ये कह कर कविता में अपने भाव दे की "तुम्हारे वीर्य सा अस्तित्व मेरा" तो समझा जा सकता है कि महिला क्या चाहती है.
आपका लिखना बिलकुल सही है.........आप खुद देखिये किसी गाने में क्या यही सब नहीं होता है?
खुल्ला खेल देहवादी......
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड

todaychhattisgarh said...

aap sach kah rhe hai lekin ab to log kaval aaur keval dekhana chahte hai....behatar post.

श्रद्धा जैन said...

chetna jagata hua lekh

Unknown said...

shyam bhai
duniya kapron ko utna tavajjo nahi deti kyonki usko sukh ki talash aisa karne par majboor karti hai magar vahi jab pardey ke dayre se bahar aajati hai to samaj ki tippari ka shikar hone par majboor ho hi jati hai.
aap ne is lekh k...o likhkar uchit kiya hai.
is lekh me vakai karuwa sach pesh kiya hai.
manoj "maun"
mahasachiv
jan vikas seva samitiSee More

Unknown said...

पुरुष देख के खुश, तो महिला दिखा के खुश !!!

SM said...

i never heard any one born with the clothes.

Dr.J.P.Tiwari said...

जब आस्थाए और परम्पराए टूटती हैं, जब आधुनिकता की चका चौंध में विवेक और आचार -विचार धुल जातें तो सलाह और सुझाओं का असर जब नहीं तो वाणी और लेखनी से पुष्प वर्षा नहीं होगी. कडवे तीक्ष्ण तीर ही चलेंगे. और इसमें कौन सा शब्द ऐसा है जिसे अनुचित कहा जाय? व्यंग वां तो दोनों पर चले हैं चाहे पुरुष हो या महिला. व्यक्ति की बात छो दीजिये यह व्यंग्वान तो नयी सभ्यता पर है जो हमारी संस्कृति पर सीधे आघात कर रही है है. लेखक को इस साहसिक लेखन और सत्य कथन के लिए तो प्रशंशा करनी चाहए. अभी तक तो इस संस्कृति ने परिवार के साथ बैठ कर सिनेमा, टी,वी. देखना बंद करा दिया अब क्या हम घरों से बाहर भी न निकालें? या निकालें उसी बेह्यायीप्न के साथ? आखिर भाग-दौड़ के इस दौर में कोई कब तक छिप-छिपकर बैठेगा भाई? पहले भी एक्टर और विदूषक इस प्रकार का आचरण करते थे, नर्तक नाचते गाते थे परन्तु आज तो भर की मर्यादा बीच सड़क नाच रही है और घर वाले ताली बजा रहें हैं. मैं जानता हूँ कुछ लोग पुरातन विचारधारा वाले बता सकते हैं, यह भी कह सकते हैं की साथिया गए हैं लिकिन एक बात सभी को याद रखनी चाहिए हर पुरानी चीज बेकार नहीं होती और हर नयी चीज अच्छी नहीं होती . यदि ऐसा ही होता तो आज कोई भी पुराण चीज घर में नहीं होती. ब्रिद्धावस्था गृहों के निर्माण के बाद भी हम अपने माँ-बाप को घरों से क्यों नहीं निकाल रहें है ? क्योकि इसका साहस नहीं वे जानते हैं यदि हम ऐसा करेंगे तो ३०-४० साल हमें भी बहार निकालने के लिए तैयार रहना पडेगा.

deepti sharma said...

prerak lekh hai aapka
.

Unknown said...

पूनम पांडे नंगा होने को अश्लीलता नहीं मानती. कहती है जब पैदा ही नंगे हुए हैं तो नंगा होने में शर्म कैसी. ऐसे संस्कार उसे कहां से मिले? समाज से?

Dr Ved Parkash Sheoran said...

kya kya likh deten hain comments main log ....

Haleem said...

मैं पूरी तरह सहमत हूँ। इसी मुद्दे पर और बहुत कुछ कहता लेख आपको यहाँ मिलेगा- http://haleem-haleem.blogspot.com

jeetupatel said...

right he guru

Tulsidas reddy said...

महिलाएँ का शरीर प्रदर्शन करनेवाले वस्त्र आज से हजारों साल पहले भी थे। उस समय यह आम बात थी लेकिन विदेशी आक्रमण कारियों के कारण महिलाओं ने अपने शरीर को ढँकना प्रारंभ कर दिया।