Thursday, April 29, 2010

उठा पप्पू - पटक पप्पू - डाट काम !!!

लफ़डा - झपडा
तिकडम - बिकडम
आडा - तिरछा
रेलम - पेल

लंबू - मोटू
हंसी - ठिठोली
अप्पू - गप्पू
धक्का - मुक्की

गिल्ली - डंडा
ढोल - नगाडे
अटका - पटकी
सरपट - रेल

सटका - सटकी
नंग्गे - लुच्चे
इक्की - दुक्की
गुल्ला - मैम

लाग इन
उठा पप्पू
पटक पप्पू
डाट काम !!!

33 comments:

M VERMA said...

गिल्ली - डंडा
ढोल - नगाडे
अटका - पटकी
सरपट - रेल

वाह क्या बात है

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

सटका - सटकी
नंग्गे - लुच्चे
इक्की - दुक्की
गुल्ला - मैम

वाह श्याम भाई,बाजा फ़ाड़ दिए हो।

नरेश सोनी said...

हा..हा...हा...
मजा आ गया उदय जी।
इसके और आगे बढ़ाते और थोड़ा और मजा आ जाता।

मनोज कुमार said...

बेहतरीन। लाजवाब।

राज भाटिय़ा said...

वाह जी वाह बहुत सुंदर ताल मिलाई आप ने.
धन्यवाद

sonal said...
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Kumar Jaljala said...
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Anonymous said...

अटका - पटकी
सरपट - रेल
सटका - सटकी
नंग्गे - लुच्चे

सच्ची-मुच्ची

honesty project democracy said...

उदय जी ,सही में आज आपने पलटी मारकर कडुआ सच को बाजा फार और दिमाग फार कविता का सच बना दिया है /

कडुवासच said...

...कोई फ़र्जी Kumar Jaljala बे-वजह ही "भाले की नौंक पर" बैठकर टिप्पणी करने आ गया था ... लगता है इसको भी खुजली हो रही है इसलिये खुजली मिटवाने दर दर भटक रहा है ... देखो अगर कोई है उसका तो संभाल कर रखो कहीं ऎसा न हो कि .... बाद में लेने-के-देने पड जाये !!!
.... फ़र्जी टिप्पणी होने के कारण ऊपर एक टिप्पणी डिलीट कर दी गई है !!!!

हिंदीब्लॉगजगत said...
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Kumar Jaljala said...

अमर उठ-खटपट मत कर पानी ला, शीला इधर आ जीजी की मिठाई खा।
कविता अच्छी है न।

Kumar Jaljala said...

अमर उठ-खटपट मत कर पानी ला, शीला इधर आ जीजी की मिठाई खा।
कविता अच्छी है न।

jamos jhalla said...

ठेलम ठेल भाई ठेलम ठेल यहाँ है सब कुछ ठेलम ठेल

jamos jhalla said...

ठेलम ठेल भाई ठेलम ठेल यहाँ है सब कुछ ठेलम ठेल

हिंदीब्लॉगजगत said...
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Udan Tashtari said...

वाह भई, बहुत खूब..उठा पप्पू!!!

कडुवासच said...

@Kumar Jaljala
...सबसे पहले तो ये गुमनामी की जिंदगी से बाहर आओ, ...फ़र्जी टाईप के लोग मुझे पसंद नहीं हैं !!!

कडुवासच said...

@Hindiblog Jagat
... सर्वप्रथम आप की पहली टिप्पणी का उत्तर :- "ये मार्डन आर्ट है" ... जिसके समझ में आ जाये तो "आर्ट" है और जिसे समझ में न आये तो "मार्डन" है !!!
... दूसरी टिप्पणी से यह स्पष्ट हो रहा है कि आप को "फ़र्जी टाईप के Kumar Jaljala जैसे बेनामी लोगों की बातें बहुत सरलता से समझ में आ जाती हैं ... मेरा तात्पर्य ये है कि उन महाशय की टिप्पणी देखकर बहुत जल्दी समझ गये कि ये क्या लिखा है उसके पहले तो आप एक प्रश्न छोडकर चले गये थे !!!!
... आप ने "Hindiblog Jagat" नाम का जो ... शो रूम / जंतर-मंतर / भूल-भुलईया / अपनी डफ़ली - अपना राग ... बना कर रखा है उसे अभी एक नजर देख के आया हूं ... बाद में फ़ुर्सत मिलते ही उसका भी "दूध का दूध - पानी का पानी" करता हूं !!!

निशांत मिश्र - Nishant Mishra said...

क्या कहूँ. मेरे पास शब्द नहीं हैं.
बस इतना कह सकता हूँ कि हिंदी ब्लौग वालों को गुलज़ार मिल गया है.
भाषा की इतनी गहरी पकड़. शब्दों का ऐसा अबूझ खेल. भावनाओं का अद्भुत उठान.!~
भाई वाह! क्या कहने आपकी इस कविता के.
अब तो यहाँ रोज़ आयेंगे.
अति सुन्दर. आभार.

हिंदीब्लॉगजगत said...
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कडुवासच said...

@Hindiblog Jagat
....वाह... बहुत सुन्दर ... लाजवाब ... रचना कठिन है ... टीका-टिप्पणी ठोक देना बहुत आसान है ... आप ने बहुत खुबसूरती से रचना को मुकाम दिया है, बहुत बहुत बधाई !!!!

राजीव तनेजा said...

बढ़िया...पुराने दिन याद आ गए

Kumar Jaljala said...

बड़े सबेरे मुर्गा बोला, चिड़ियों ने अपना मुंह खोला
आसमान पर लगा चमकने लाल-लाल सूरज का गोला
गर्मी से फट गई भाई.. सब बोले दिन निकला भाई
आशा है यह कविता भी आपको पसन्द आएगी। हालांकि यह कविता बाबा जलजला की नहीं है। दूसरी और तीसरी कविता बाद में लिखूंगा। जो भी आपने रोचक बहस चलाई है।

समय चक्र said...

पपू कांट डांस साला ,,,, मजा आ गया उदय जी

Anonymous said...

इस पोस्ट पर इस कविता पर वाहवाही करने वाले सभी लोग साहित्य की रती मात्र भी समझ नहीं रखते. साहित्य तो दूर उन्हें यह भी नहीं पता कि हास्य कविता कैसी होती है और हास्य क्या है.
आपकी कविता बहुत ही हास्यास्पद है.

दीपक गर्ग said...

अब क्या बोलें
क्यों मुंह खोलें
थोड़ा हंस लें
थोड़ा रो लें.

arvind said...

kavita kaa arth pravaah maatra hai.......bahut hi bejod kavita...vah shyam bhai badhaai swikaaren.

कडुवासच said...

@Jyotsna
... सबसे पहले तो यह ही कहूंगा कि आप फ़र्जी आई डी बनाकर बे-वजह ही टीका-टिप्पणी कर रही हैं ... इसलिये आप के कमेंट पर कोई जवाब नहीं दे रहा हूं ... आपसे आग्रह है कि ब्लागजगत को अगर कुछ देना है तो ये फ़र्जीपना छोडिये और एक ब्लागर बनकर मैदान में आईये... !!!

कडुवासच said...

@दीपक गर्ग जी
आपका ब्लाग व लगाई गई पोस्ट दोनो प्रभावशाली हैं वहां टिप्पणी की सुविधा दिखाई नहीं दी इसलिये ... दूसरी बात पोस्ट के पसंद या नापसंद के मुद्दे पर मेरा तो यही कहना है कि गुमनामी के साये में रह कर किसी भी पोस्ट को नापसंद का चटका लगाना उचित नहीं है यदि पोस्ट नापसंद है तो टिप्पणी दर्ज कर अपने विचार अभिव्यक्त करना चाहिये !!!

रश्मि प्रभा... said...

लाग इन
उठा पप्पू
पटक पप्पू
डाट काम !!mast

Urmi said...

एक नए अंदाज़ में बहुत ही सुन्दर शब्दों का ताल मेल के साथ उम्दा प्रस्तुती! बहुत ही बढ़िया और मज़ेदार लगा!

संजय भास्‍कर said...

.फ़र्जी टाईप के लोग मुझे पसंद नहीं हैं !!!