'औरत' के श्रंगार को देखो
और उसके व्यवहार को देखो
मन में बसे प्यार को देखो
और अंदर दबे अंगार को देखो !
देखो उसकी लज्जा को
और देखो उसकी शर्म-हया को
देखो उसकी करुणा को
और देखो समर्पण को !
'औरत' के तुम रूप को देखो
और रचे श्रंगार को देखो
देखो उसकी शीतलता को
और देखो कोमलता को !
मत पहुंचाओ ठेस उसे तुम
मत छेडो श्रंगार को
रहने दो ममता की मूरत
मत तोडो उसके दिल को !
उसने घर में "दीप" जलाये
आंगन में हैं "फ़ूल" खिलाये
बजने दो हांथों में चूंडी
और पैरों में पायल !
मत खींचो आंचल को उसके
मत करो निर्वस्त्र उसे तुम
रहने दो "लक्ष्मी की मूरत"
मत बनने दो "कालिका" !
अगर बनी वो "कालिका"
फ़िर, फ़िर तुम क्या ........!!
12 comments:
श्रृंगार प्यार और व्यवहार के साथ अंगार भी दबा हुआ है | लज्जा करुणा के साथ समर्पण | रूप के साथ शीतलता और कोमलता | साथ ही ठेस न पहुचाने की बात | यह भी सही है कि लक्ष्मी की मूरत जब अन्याय और अत्याचार सहन नहीं कर पाती है तो कालिका भी बन सकती है | और अगर वह कालिका बन गई तो ......इस रिक्त स्थान में बहुत कुछ लिखा जा सकता है |आज महिला दिवस के अवसर पर आपकी यह रचना बहुत अच्छी लगी
बहुत अच्छी रचना ... सच है नारी का सम्मान और प्यार दोनो ही करना चाहिए ... नारी ज़्यादा सनशील है, कठोर है, त्याग की मूरत है ....
बहुत सुन्दर कविता …………साथ ही सुन्दर सन्देश्।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
महिला दिवस पर सभी को हार्दिक शुभकामनाएं...
मत पहुंचाओ ठेस उसे तुम
मत छेडो श्रंगार को
रहने दो ममता की मूरत
मत तोडो उसके दिल को
........बहुत अच्छी रचना .सुन्दर सन्देश्।
aurat kee mamta ko dekho
dekho uske tyaag ko
aurat kee nishtha ko jano.....
bahut badhiyaa
बहुत ही सुंदर संदेश दे रही है आप की यह कविता,नारी की महानता सच मै यही तो है.
धन्यवाद
मत खींचो आंचल को उसके
मत करो निर्वस्त्र उसे तुम
रहने दो "लक्ष्मी की मूरत"
मत बनने दो "कालिका"
बहुत खूब,उम्दा पक्तियां
विकास पाण्डेय
www.विचारो का दर्पण.blogspot.com
मत खींचो आंचल को उसके
मत करो निर्वस्त्र उसे तुम
रहने दो "लक्ष्मी की मूरत"
मत बनने दो "कालिका"
नारी सम्मान पर सुन्दर प्रस्तुति।
बेहतरीन.........वाकई..बहुत बेहतरीन..
सहजता पर सार्थकता भी.भाव व्यक्त करने में सक्षम रचना.
बहुत सुन्दर कविता
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