Wednesday, May 27, 2009

शेर

शेर - 57
खुदा की सूरतें हैं क्या, खुदा की मूरतें हैं क्या
न तुम जाने, न हम जाने ।
शेर - 56
अंधेरे जिन्हे रास नही आते
उनकी राहों मे रौशनी खुद-व-खुद आ जाती है।
शेर - 55
चलो लिख दें इबारत कुछ इस तरह
जिसे पढकर रस्ते बदल जाएँ।

4 comments:

राज भाटिय़ा said...

चलो लिख दें इबारत कुछ इस तरह
जिसे पढकर रस्ते बदल जाएँ।
वाह क्या बात है, अति सुंदर
धन्यवाद

Alpana Verma said...

चलो लिख दें इबारत कुछ इस तरह
जिसे पढकर रस्ते बदल जाएँ।
-वाह!बहुत ही उम्दा ख्याल है श्याम जी!

रश्मि प्रभा... said...

चलो लिख दें इबारत कुछ इस तरह
जिसे पढकर रस्ते बदल जाएँ।
......bahut hi badhiyaa

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही उम्दा ख्याल है श्याम जी!