"चलो अच्छा हुआ, जो तुम मेरे दर पे नहीं आए / तुम झुकते नहीं, और मैं चौखटें ऊंची कर नही पाता !"
“भ्रष्टाचार से अर्जित सम्पत्ति परिजनों को पथभ्रष्ट कर देती है तथा परिवार विखण्डित होने लगता है, यह स्थिति भ्रष्टाचारी स्वयं आँखों से देखता है।”
सत्यचवन---तख़लीक़-ए-नज़र । चाँद, बादल और शाम
बात तो सही है.............पर आजकल भ्रष्टाचार की परिभाषा बदल गयी है
kuch samjha nahi? aap kise chetavani de rahe?
bilkul sahi kah rahe hai aap..yah ek bimaari hai...
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4 comments:
सत्यचवन
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तख़लीक़-ए-नज़र । चाँद, बादल और शाम
बात तो सही है.............पर आजकल भ्रष्टाचार की परिभाषा बदल गयी है
kuch samjha nahi? aap kise chetavani de rahe?
bilkul sahi kah rahe hai aap..yah ek bimaari hai...
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